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विश्वो॑ दे॒वस्य॑ ने॒तुर्मर्तो॑ वुरीत स॒ख्यम्। विश्वो॑ रा॒यऽइ॑षुध्यति द्यु॒म्नं वृ॑णीत पु॒ष्यसे॒ स्वाहा॑ ॥६७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वः॑। दे॒वस्य॑। ने॒तुः। मर्त्तः॑। वु॒री॒त॒। स॒ख्यम्। विश्वः॑। रा॒ये। इ॒षु॒ध्य॒ति॒। द्यु॒म्नम्। वृ॒णी॒त॒। पु॒ष्यसे॑। स्वाहा॑ ॥६७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:67


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर गृहस्थों को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे विद्वान् लोग ग्रहण करते हैं (विश्वः) सब (मर्त्तः) मनुष्य (नेतुः) सब के नायक (देवस्य) सब जगत् के प्रकाशक परमेश्वर के (सख्यम्) मित्रता को (वुरीत) स्वीकार करें (विश्वः) सब मनुष्य (राये) शोभा वा लक्ष्मी के किये (इषुध्यति) बाणादि आयुधों को धारण करें (स्वाहा) सत्यवाणी और (द्युम्नम्) प्रकाशयुक्त यश वा अन्न को (वृणीत) ग्रहण करें और जैसे इससे तू (पुष्यसे) पुष्ट होता है, वैसे हम लोग भी होवें ॥६७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। गृहस्थ मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर के साथ मित्रता कर सत्य व्यवहार से धन को प्राप्त हो के कीर्ति कराने हारे कर्मों को नित्य किया करें ॥६७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्गृहस्थैः किं कार्य्यमित्याह ॥

अन्वय:

(विश्वः) सर्वः (देवस्य) सर्वजगत्प्रकाशकस्य परमेश्वरस्य (नेतुः) सर्वनायकस्य (मर्त्तः) मनुष्यः (वुरीत) स्वीकुर्यात् (सख्यम्) सख्युर्भावं कर्म वा (विश्वः) अखिलः (राये) श्रियै (इषुध्यति) शरादीनि शस्त्राणि धरेत्। लेट्प्रयोगोऽयम् (द्युम्नम्) प्रकाशयुक्तं यशोऽन्नं वा। द्युम्नं द्योततेर्यशोऽन्नं वा। (निरु०५.५) (वृणीत) स्वीकुर्य्यात् (पुष्यसे) पुष्टो भवेः (स्वाहा) सत्यां वाचम्। [अयं मन्त्रः शत०६.६.१.२१ व्याख्यातः] ॥६७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यथा विद्वांस्तथा विश्वो मर्त्तो नेतुर्देवस्य सख्यं वुरीत, विश्वो मनुष्यो राय इषुध्यति। स्वाहा द्युम्नं वृणीत यथा चैतेन त्वं पुष्यसे, तथा वयमपि भवेम ॥६७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। गृहस्थैर्मनुष्यैः परमेश्वरेण सह मैत्रीं कृत्वा सत्येन व्यवहारेण श्रियं प्राप्य यशस्वीनि कर्माणि नित्यं कार्य्याणि ॥६७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसाने परमेश्वराशी मैत्री करून व सत्य व्यवहाराने धनप्राप्ती करून नेहमी कीर्ती वाढविणारे कर्म करावे.