उ॒खां कृ॑णोतु॒ शक्त्या॑ बा॒हुभ्या॒मदि॑तिर्धि॒या। मा॒ता पु॒त्रं यथो॒पस्थे॒ साग्निं बि॑भर्त्तु॒ गर्भ॒ऽआ। म॒खस्य॒ शिरो॑ऽसि ॥५७ ॥
उ॒खाम्। कृ॒णो॒तु॒। शक्त्या॑। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुभ्या॑म्। अदि॑तिः। धि॒या। मा॒ता। पु॒त्रम्। यथा॑। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒पऽस्थे॑। सा। अ॒ग्निम्। बि॒भ॒र्त्तु॒। गर्भे॑। आ। म॒खस्य॑। शिरः॑। अ॒सि॒ ॥५७ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(उखाम्) पाकस्थालीम् (कृणोतु) (शक्त्या) पाकविद्यासामर्थ्येन (बाहुभ्याम्) (अदितिः) जननी (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा (माता) (पुत्रम्) (यथा) (उपस्थे) स्वाङ्के (सा) पत्नी (अग्निम्) अग्निमिव वर्त्तमानं वीर्य्यम् (बिभर्त्तु) (गर्भे) कुक्षौ (आ) (मखस्य) यज्ञस्य (शिरः) उत्तमाङ्गवद्वर्त्तमानः (असि)। [अयं मन्त्रः शत०६.५.१.११ व्याख्यातः] ॥५७ ॥