वांछित मन्त्र चुनें

मि॒त्रः स॒ꣳसृज्य॑ पृथि॒वीं भूमिं॑ च॒ ज्योति॑षा स॒ह। सुजा॑तं जा॒तवे॑दसमय॒क्ष्माय॑ त्वा॒ सꣳसृ॑जामि प्र॒जाभ्यः॑ ॥५३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मि॒त्रः। स॒ꣳसृज्येति॑ स॒म्ऽसृज्य॑। पृ॒थि॒वीम्। भूमि॑म्। च॒। ज्योति॑षा। स॒ह। सुजा॑त॒मिति॒ सुऽजा॑तम्। जा॒तवे॑दस॒मिति॑ जा॒तऽवे॑दसम्। अ॒य॒क्ष्माय॑। त्वा॒। सम्। सृ॒जा॒मि॒। प्र॒जाभ्य॒ इति॑ प्र॒ऽजाभ्यः॑ ॥५३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:53


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पते ! जो आप (मित्रः) सब के मित्र होके (प्रजाभ्यः) पालने योग्य प्रजाओं को (अयक्ष्माय) आरोग्य के लिये (ज्योतिषा) विद्या और न्याय की अच्छी शिक्षा के प्रकाश के (सह) साथ (पृथिवीम्) अन्तरिक्ष (च) और (भूमिम्) पृथिवी के साथ (संसृज्य) सम्बन्ध करके मुझ को सुख देते हो। उस (सुजातम्) अच्छे प्रकार प्रसिद्ध (जातवेदसम्) वेदों के जानने हारे (त्वा) आपको मैं (संसृजामि) प्रसिद्ध करती हूँ ॥५३ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुषों को चाहिये कि श्रेष्ठ, गुणवान्, विद्वानों के सङ्ग से शुद्ध आचार का ग्रहण कर शरीर और आत्मा के आरोग्य को प्राप्त हो के अच्छे-अच्छे सन्तानों को उत्पन्न करें ॥५३ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(मित्रः) सर्वेषां सुहृत् सन् (संसृज्य) संसर्गी भूत्वा (पृथिवीम्) अन्तरिक्षम् (भूमिम्) क्षितिम् (च) (ज्योतिषा) विद्यान्यायसुशिक्षाप्रकाशेन (सह) (सुजातम्) सुष्ठु प्रसिद्धम् (जातवेदसम्) उत्पन्नं वेदविज्ञानम् (अयक्ष्माय) आरोग्याय (त्वा) त्वाम् (सम्) (सृजामि) निष्पादयामि (प्रजाभ्यः) पालनीयाभ्यः। [अयं मन्त्रः शत०६.५.१.५ व्याख्यातः] ॥५३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पते ! यस्त्वं मित्रः प्रजाभ्योऽयक्ष्माय ज्योतिषा सह पृथिवीं भूमिं च संसृज्य मां सुखयसि। तं सुजातं जातवेदसं त्वाऽहमप्येतदर्थं संसृजामि ॥५३ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्रीपुरुषाभ्यां सद्गुणविद्वदासङ्गाच्छ्रेष्ठाचारं कृत्वा शरीरात्मनोरारोग्यं संपाद्य सुप्रजा उत्पादनीयाः ॥५३ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुषांनी श्रेष्ठ गुणवान विद्वानांच्या संगतीने शुद्ध आचरण ठेवावे व शरीर आणि आत्मा यांना निरोगी बनवावे व चांगल्या संतानांना जन्म द्यावा.