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तमु॑ त्वा पा॒थ्यो वृषा॒ समी॑धे दस्यु॒हन्त॑मम्। ध॒न॒ञ्ज॒यꣳ रणे॑रणे ॥३४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। ऊ॒ इत्यूँ॑। त्वा॒। पा॒थ्यः। वृषा॑। सम्। ई॒धे॒। द॒स्यु॒हन्त॑म॒मिति॑ दस्यु॒हन्ऽत॑मम्। ध॒न॒ञ्ज॒यमिति॑ धनम्ऽज॒यम्। रणे॑रण॒ इति॒ रणे॑ऽरणे ॥३४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:34


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीर पुरुष ! जो आप (पाथ्यः) अन्न जल आदि पदार्थों की सिद्धि में कुशल (वृषा) पराक्रमी (रणेरणे) प्रत्येक युद्ध में शूरता आदि युक्त विद्वान् हैं (तम्) पूर्वोक्त पदार्थविद्या जानने (धनञ्जयम्) शत्रुओं से धन जीतने (उ) और (दस्युहन्तमम्) अतिशय करके डाकुओं को मारनेवाले (त्वा) आप को वीरों की सेना राजधर्म्म की शिक्षा से (समीधे) प्रदीप्त करे ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - राजा आदि राजपुरुषों को चाहिये कि आप्त धर्मात्मा विद्वानों से विनय और युद्धविद्या को प्राप्त हो प्रजा की रक्षा के लिये चोरों को मार शत्रुओं को जीत कर परम ऐश्वर्य्य की उन्नति करें ॥३४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(तम्) पूर्वोक्तं पदार्थविद्याविदम् (उ) (त्वा) त्वाम् (पाथ्यः) पाथस्सु जलान्नादिपदार्थेषु साधुः (वृषा) वीर्य्यवान् (सम्) (ईधे) राजधर्मशिक्षया प्रदीप्यताम् (दस्युहन्तमम्) अतिशयेन दस्यूनां हन्तारम् (धनञ्जयम्) यः शत्रुभ्यो धनं जयति तम् (रणेरणे) युद्धेयुद्धे। [अयं मन्त्रः शत०६.४.२.४ व्याख्यातः] ॥३४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वीर ! यस्त्वं पाथ्यो वृषा रणेरणे विद्वान् शौर्य्यादिगुणयुक्तोऽसि, तं धनञ्जयमु दस्युहन्तमं त्वा त्वां वीरसेनया समीधे ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - राजादयो राजपुरुषा आप्तेभ्यो विद्वद्भ्यो विनयं युद्धविद्यां प्राप्य प्रजारक्षायै चोरान् हत्वा शत्रून् विजित्य परमैश्वर्य्यमुन्नयेयुः ॥३४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजा व राजपुरुषांनी आप्त धर्मात्मा विद्वानांकडून विनयपूर्वक युद्धविद्या शिकावी. प्रजेच्या रक्षणासाठी चोरांचा नाश करू शत्रूंना जिंकून परम ऐश्वर्य मिळवावे.