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यु॒क्त्वाय॑ सवि॒ता दे॒वान्त्स्व॑र्य॒तो धि॒या दिव॑म्। बृ॒हज्ज्योतिः॑ करिष्य॒तः स॑वि॒ता प्रसु॑वाति॒ तान् ॥३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒क्त्वाय॑। स॒वि॒ता। दे॒वान्। स्वः॑। य॒तः। धि॒या। दिव॑म्। बृ॒हत्। ज्योतिः॑। क॒रि॒ष्य॒तः। स॒वि॒ता। प्र। सु॒वा॒ति॒। तान् ॥३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जिन को (सविता) योग के पदार्थों के ज्ञान का करनेहारा जन परमात्मा में मन को (युक्त्वाय) युक्त करके (धिया) बुद्धि से (दिवम्) विद्या के प्रकाश को (स्वः) सुख को (यतः) प्राप्त करानेवाले (बृहत्) बड़े (ज्योतिः) विज्ञान को (करिष्यतः) जो करेंगे उन (देवान्) दिव्य गुणों को (प्रसुवाति) उत्पन्न करे (तान्) उनको अन्य भी (सविता) उत्पादक जन उत्पन्न करे ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष योग और पदार्थविद्या का अभ्यास करते हैं, वे अविद्या आदि क्लेशों को हटानेवाले शुद्ध गुणों को प्रकट कर सकते हैं। जो उपदेशक पुरुष से योग और तत्त्वज्ञान को प्राप्त हो के ऐसा अभ्यास करे, वह भी इन गुणों को प्राप्त होवे ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(युक्त्वाय) युक्तं कृत्वा (सविता) योगपदार्थज्ञानस्य प्रसविता (देवान्) दिव्यान् गुणान् (स्वः) सुखस्य (यतः) प्रापकान् (धिया) प्रज्ञया (दिवम्) विद्याप्रकाशम् (बृहत्) महत् (ज्योतिः) विज्ञानम् (करिष्यतः) ये करिष्यन्ति तान् (सविता) प्ररेकः (प्र) (सुवाति) उत्पादयेत् (तान्)। [अयं मन्त्रः शत०६.३.१.१५ व्याख्यातः] ॥३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यान् सविता परमात्मनि मनो युक्त्वाय धियां दिवं स्वर्यतो बृहज्ज्योतिः करिष्यतो देवान् प्रसुवाति तानन्योऽपि सविता प्रसुवेत् ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - ये योगपदार्थविद्ये अभ्यस्यन्ति, तेऽविद्यादिक्लेशानां निवारकान् शुद्धान् गुणान् जनितुं शक्नुवन्ति। य उपदेशकाद्योगं तत्त्वज्ञानं च प्राप्यैवमभ्यस्येत् सोऽप्येतान् प्राप्नुयात् ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष योगाभ्यास करतात ते अविद्या इत्यादी दोष दूर करून शुद्ध गुण प्रकट करू शकतात. जे उपदेशकांपासून योग व तत्त्वज्ञान प्राप्त करून अभ्यास करतात त्यांनाही हे गुण प्राप्त होतात.