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आ॒क्रम्य॑ वाजिन् पृथि॒वीम॒ग्निमि॑च्छ रु॒चा त्वम्। भूम्या॑ वृ॒त्वाय॑ नो ब्रूहि॒ यतः॒ खने॑म॒ तं व॒यम् ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒क्रम्येत्या॒ऽक्रम्य॑। वा॒जि॒न्। पृ॒थि॒वीम्। अ॒ग्निम्। इ॒च्छ॒। रु॒चा। त्वम्। भूम्याः॑। वृ॒त्वाय॑। नः॒। ब्रूहि॑। यतः॑। खने॑म। तम्। व॒यम् ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य जन्म पा और विद्या पढ़ के पश्चात् क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजिन्) प्रशंसित ज्ञानवाले सभापति विद्वान् राजा ! (त्वम्) आप (रुचा) प्रीति से शत्रुओं को (आक्रम्य) पादाक्रान्त कर (पृथिवीम्) भूमि के राज्य और (अग्निम्) [अग्नि] विद्या की (इच्छ) इच्छा कीजिये और (भूम्याः) पृथिवी के बीच (नः) हम लोगों को (वृत्वाय) स्वीकार करके हमारे लिये (ब्रूहि) भूगर्भ और अग्निविद्या का उपदेश कीजिये (यतः) जिस से (वयम्) हम लोग (तम्) उस विद्या में (खनेम) प्रविष्ट होवें ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये की भूगर्भ और अग्नि विद्या से पृथिवी के पदार्थों को अच्छे प्रकार परीक्षा करके सुवर्ण आदि रत्नों को उत्साह के साथ प्राप्त होवें और जो पृथिवी को खोदनेवाले नौकर-चाकर हैं, उन को इस विद्या का उपदेश करें ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यजन्म प्राप्य विद्या अधीत्यातः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(आक्रम्य) (वाजिन्) प्रशस्तविज्ञानवन् (पृथिवीम्) भूमिराज्यम् (अग्निम्) अग्निविद्याम् (इच्छ) (रुचा) प्रीत्या (त्वम्) (भूम्याः) क्षितेर्मध्ये (वृत्वाय) स्वीकृत्य। अत्र क्त्वो यक् [अष्टा०७.१.४७] इति यगागमः। (नः) अस्मान् (ब्रूहि) भूगर्भाग्निविद्यामुपदिश (यतः) (खनेम) (तम्) भूगोलम् (वयम्) ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वाजिन् विद्वन् सभेश राजस्त्वं रुचा शत्रूनाक्रम्य पृथिवीमग्निं चेच्छ, भूम्या नो वृत्वाय ब्रूहि, यतो वयं तं खनेम ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्भूगर्भाग्निविद्यया पार्थिवान् पदार्थान् सुपरीक्ष्य सुवर्णादीनि रत्नान्युत्साहेन प्राप्तव्यानि। ये खनितारो भृत्याः सन्ति तान् प्रति तद्विद्योपदेष्टव्या ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी भूगर्भ व अग्निविद्या याद्वारे पृथ्वीवरील पदार्थांची सूक्ष्म रीतीने परीक्षा करून उत्साहाने सुवर्ण व रत्ने प्राप्त करावीत व उत्खनन करणाऱ्या कामगारांना या विद्या शिकवाव्यात.