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उदी॑ची॒मारो॑हानु॒ष्टुप् त्वा॑वतु वैरा॒जꣳ सामै॑कवि॒॑ꣳश स्तोमः॑ श॒रदृ॒तुः फलं॒ द्रवि॑णम् ॥१३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उदाची॑म्। आ। रो॒ह॒। अ॒नु॒ष्टुप्। अ॒नु॒स्तुबित्य॑नु॒ऽस्तुप्। त्वा॒। अ॒व॒तु॒। वै॒रा॒जम्। साम॑। ए॒क॒वि॒ꣳश इत्ये॑कऽवि॒ꣳशः। स्तोमः॑। श॒रत्। ऋ॒तुः। फल॑म्। द्रवि॑णम् ॥१३॥

यजुर्वेद » अध्याय:10» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा आदि पुरुषों को क्या प्राप्त करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभापति राजा ! आप (उदीचीम्) उत्तर की दिशा में (आरोह) प्रसिद्धि को प्राप्त हूजिये, जिससे (अनुष्टुप्) जिसको पढ़ के सब विद्याओं से दूसरों की स्तुति करें, वह छन्द (वैराजम्) अनेक प्रकार के अर्थों से शोभायमान (साम) सामवेद का भाग (एकविंशः) सोलह कला, चार पुरुषार्थ के अवयव और एक कर्त्ता इन इक्कीस को पूरण करनेहारा (स्तोमः) स्तुति का विषय (शरत्) शरद् (ऋतुः) ऋतु (द्रविणम्) ऐश्वर्य्य और (फलम्) फलरूप सेवाकारक शूद्रकुल (त्वा) आपको (अवतु) प्राप्त होवे ॥१३॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष आलस्य को छोड़ सब समय में पुरुषार्थ का अनुष्ठान करते हैं, वे अच्छे फलों को भोगते हैं ॥१३॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजादिनरैः किं लब्धव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(उदीचीम्) उत्तराम् (आ) (रोह) (अनुष्टुप्) यया पठित्वा पुनः सर्वा विद्या अन्येभ्यः स्तुवन्ति सा (त्वा) (अवतु) (वैराजम्) यद्विविधैरर्थै राजते तदेव (साम) (एकविंशः) षोडश कलाश्चत्वारः पुरुषार्थाऽवयवाः कर्त्ता चेति तेषामेकाविंशतेः पूरणः (स्तोमः) स्तुतिविषयः (शरत्) (ऋतुः) (फलम्) सेवाफलदं शूद्रकुलम् (द्रविणम्) ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.४.१.६) व्याख्यातः ॥१३॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभापते ! त्वमुदीचीं दिशमारोह। यतोऽनुष्टुप् वैराजं सामैकविंशस्तोम ऋतुः शरद् द्रविणं फलं च त्वाऽवतु ॥१३॥
भावार्थभाषाः - ये जना आलस्यं विहाय सर्वदा पुरुषार्थमेवानुतिष्ठन्ते ते सच्छूद्रान् प्राप्य फलवन्तो जायन्ते ॥१३॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष आळस सोडून सर्व काळी पुरुषार्थ कारतात त्यांना उत्तम फळ प्राप्त होते.