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प्रत्यु॑ष्ट॒ꣳरक्षः॒ प्रत्यु॑ष्टा॒ऽअरा॑तयो॒ निष्ट॑प्त॒ꣳरक्षो॒ निष्ट॑प्ता॒ऽअरा॑तयः। उ॒र्व᳕न्तरि॑क्ष॒मन्वे॑मि ॥७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रत्यु॑ष्ट॒मिति॒ प्रति॑ऽउष्टम्। रक्षः॑। प्रत्यु॑ष्टा॒ इति॒ प्रति॑ऽउष्टाः। अरा॑तयः। निष्ट॑प्तम्। निस्त॑प्त॒मिति॒। निःऽत॑प्तम्। रक्षः॑। निष्ट॑प्ताः। निस्त॑प्ता॒ इति॒ निःऽत॑प्ताः। अरा॑तयः। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। अनु॑ऽए॒मि॒ ॥७॥

यजुर्वेद » अध्याय:1» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सब मनुष्यों को उचित है कि दुष्ट गुण और दुष्ट स्वभाववाले मनुष्यों का निषेध करें, इस बात का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मुझ को चाहिये कि पुरुषार्थ के साथ (रक्षः) दुष्ट गुण और दुष्ट स्वभाववाले मनुष्य को (प्रत्युष्टम्) निश्चय करके निर्मूल करूँ तथा (अरातयः) जो राति अर्थात् दान आदि धर्म से रहित दयाहीन दुष्ट शत्रु हैं, उनको (प्रत्युष्टाः) प्रत्यक्ष निर्मूल (रक्षः) वा दुष्ट स्वभाव, दुष्टगुण, विद्याविरोधी, स्वार्थी मनुष्य और (निष्टप्तम्) (अरातयः) छलयुक्त होके विद्या के ग्रहण वा दान से रहित दुष्ट प्राणियों को (निष्टप्ताः) निरन्तर सन्तापयुक्त करूँ। इस प्रकार करके (अन्तरिक्षम्) सुख के सिद्ध करनेवाले उत्तम स्थान और (उरु) अपार सुख को (अन्वेमि) प्राप्त होऊँ ॥७॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर आज्ञा देता है कि सब मनुष्यों को अपना दुष्ट स्वभाव छोड़कर विद्या और धर्म के उपदेश से औरों को भी दुष्टता आदि अधर्म के व्यवहारों से अलग करना चाहिये तथा उन को बहु प्रकार का ज्ञान और सुख देकर सब मनुष्य आदि प्राणियों को विद्या, धर्म, पुरुषार्थ और नाना प्रकार के सुखों से युक्त करना चाहिये ॥७॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सर्वैर्दुष्टगुणानां दुष्टमनुष्याणां च निषेधः कर्त्तव्य इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(प्रत्युष्टम्) यत्प्रतीतं च तदुष्टं दग्धं च तत् (रक्षः) रक्षःस्वभावो दुष्टो मनुष्यः (प्रत्युष्टाः) प्रत्यक्षतया उष्टा दग्धव्यास्ते (अरातयः) अविद्यमाना रातिर्दानं येषु ते शत्रवः (निष्टप्तम्) नितरां तप्तं संतापयुक्तं च कार्य्यम् (रक्षः) स्वार्थी मनुष्यः (निष्टप्ताः) पूर्ववत् (अरातयः) कपटेन विद्यादानग्रहणरहिताः (उरु) बहुविधं सुखं प्राप्तुं प्रापयितुं वा। उर्विति बहुनामसु पठितम् (निघं꠶३.१)। (अन्तरिक्षम्) सुखसाधनार्थमवकाशम् (अन्वेमि) अनुगतं प्राप्नोमि ॥ अयं मन्त्रः (शत꠶१.१.२.२-४) व्याख्यातः ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - मया रक्षः प्रत्युष्टमरातयः प्रत्युष्टा रक्षो निष्टप्तमरातयो निष्टप्ताः पुरुषार्थेन सदैव कार्य्याः। एवं कृत्वान्तरिक्षमुरु बहुसुखं चान्वेमि ॥७॥
भावार्थभाषाः - इदमीश्वर आज्ञापयति सर्वैर्मनुष्यैः स्वकीयं दुष्टस्वभावं त्यक्त्वाऽन्येषामपि विद्याधर्मोपदेशेन त्याजयित्वा दुष्टस्वभावान् मनुष्यांश्च निवार्य्य बहुविधं ज्ञानं सुखं च संपाद्य विद्याधर्मपुरुषार्थान्विताः सुखिनः सर्वे प्राणिनः सदा संपादनीयाः ॥७॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वर अशी आज्ञा देतो की सर्व माणसांनी आपल्या दुष्ट स्वभावाचा त्याग करून इतरांनाही दुष्टपणा व अधर्माच्या व्यवहारापासून दूर करून विद्या व धर्माचा उपदेश केला पाहिजे. त्यांना अनेक प्रकारचे ज्ञान देऊन सुखी केले पाहिजे. उक्त विद्यायु करून धार्मिक व पुरुषार्थी बनवून विविध सुखांनी संपन्न केले पाहिजे.