वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

स꣢ सू꣣नु꣢र्मा꣣त꣢रा꣣ शु꣡चि꣢र्जा꣣तो꣢ जा꣣ते꣡ अ꣢रोचयत् । म꣣हा꣢न्म꣣ही꣡ ऋ꣢ता꣣वृ꣡धा꣢ ॥९३६॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

स सूनुर्मातरा शुचिर्जातो जाते अरोचयत् । महान्मही ऋतावृधा ॥९३६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः꣢ । सू꣣नुः꣢ । मा꣣त꣡रा꣢ । शु꣡चिः꣢꣯ । जा꣣तः꣢ । जा꣣ते꣡इति꣢ । अ꣡रोचयत् । महा꣣न् । म꣢ही꣢इति꣣ । ऋ꣣तावृ꣡धा꣢ । ऋ꣣त । वृ꣡धा꣢꣯ ॥९३६॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 936 | (कौथोम) 3 » 1 » 16 » 2 | (रानायाणीय) 5 » 6 » 1 » 2


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अब आचार्य से पढ़ाया हुआ कैसा पुत्र माता-पिता का यश फैलानेवाला होता है, यह कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

(सः) वह सुयोग्य आचार्य से शिक्षा दिया हुआ, (शुचिः)पवित्र हृदयवाला, (जातः) स्नातक बना हुआ (महान्) गुणों में महान् (सूनुः) पुत्र (जाते) विद्याओं से प्रसिद्ध, (मही) महागुणविशिष्ट, (ऋतावृधा) सत्य को बढ़ानेवाले (मातरा) माता-पिता को (अरोचयत्) यश से प्रदीप्त करता है ॥२॥

भावार्थभाषाः -

सुयोग्य गुरुओं से पढ़ाया हुआ सुयोग्य पुत्र सुयोग्य माता-पिताओं और सुयोग्य गुरुओं की कीर्ति फैलाता है ॥२॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथाचार्येणाध्यापितः कीदृशः पुत्रो मातापित्रोर्यशस्करो जायत इत्याह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(सः) सुयोग्येन आचार्येण शिक्षितः असौ शुचिः पवित्रहृदयः, (जातः) स्नातको भूतः (महान्)महागुणविशिष्टः (सूनुः) पुत्रः (जाते) जातौ विद्याभिः प्रसिद्धौ (मही) महागुणविशिष्टौ (ऋतावृधा) सत्यस्य वर्धकौ (मातरा) मातापितरौ (अरोचयत्) यशसा प्रदीपयति ॥२॥

भावार्थभाषाः -

सुयोग्यैर्गुरुभिरध्यापितः सुयोग्यः पुत्रः सुयोग्ययोर्मातापित्रोः सुयोग्यानां गुरूणां च कीर्तिं प्रसारयति ॥२॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।९।३।