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नू꣡ नो꣢ र꣣यिं꣢ म꣣हा꣡मि꣢न्दो꣣ऽस्म꣡भ्य꣢ꣳ सोम वि꣣श्व꣡तः꣢ । आ꣡ प꣢वस्व सह꣣स्रि꣡ण꣢म् ॥९२६॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

नू नो रयिं महामिन्दोऽस्मभ्यꣳ सोम विश्वतः । आ पवस्व सहस्रिणम् ॥९२६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नु꣢ । नः꣣ । रयि꣢म् । म꣣हा꣢म् । इ꣣न्दो । अस्म꣡भ्य꣢म् । सोम । वि꣣श्व꣡तः꣢ । आ । प꣣वस्व । सहस्रि꣡ण꣢म् ॥९२६॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 926 | (कौथोम) 3 » 1 » 12 » 3 | (रानायाणीय) 5 » 4 » 3 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमात्मा और आचार्य से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्दो) तेजस्वी तथा आनन्दरस वा विद्यारस से आर्द्र करनेवाले (सोम) शुभगुणप्रेरक परमात्मन् वा आचार्य ! आप (नु) निश्चय से (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (विश्वतः)सब ओर से (महाम्) महान्, (सहस्रिणम्) हजार की संख्यावाले (रयिम्) धन, धान्य, विद्या, आरोग्य, सच्चरित्रता, न्याय, दया आदि ऐश्वर्य को (आ पवस्व) प्राप्त कराओ ॥३॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा की कृपा से और आचार्य के प्रयत्न से मनुष्य सभी आध्यामिक और भौतिक सम्पत्ति को प्राप्त कर सकते हैं ॥३॥ इस खण्ड में गुरु-शिष्य के विषय तथा परमात्मा के विषय का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ पञ्चम अध्याय में चतुर्थ खण्ड समाप्त ॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमात्मानमाचार्यं च प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्दो) तेजस्विन्, आनन्दरसेन विद्यारसेन वा क्लेदयितः (सोम) शुभगुणप्रेरक परमात्मन् आचार्य वा ! त्वम् (नु) निश्चयेन (अस्मभ्यम्) नः (विश्वतः) सर्वतः (महाम्) महान्तम् (सहस्रिणम्)सहस्रसंख्यावन्तम् (रयिम्) धनधान्यविद्यारोग्यसच्चारित्र्य-न्यायदयादिकम् ऐश्वर्यम् (आ पवस्व) आ गमय ॥३॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मकृपयाऽऽचार्यस्य च प्रयत्नेन मनुष्याः सर्वामप्याध्यात्मिकीं भौतिकीं च सम्पदं प्राप्तुं शक्नुवन्ति ॥३॥ अस्मिन् खण्डे गुरुशिष्यविषयस्य परमात्मविषयस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन सह संगतिरस्ति ॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।४०।३।