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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: त्रित आप्त्यः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

रा꣣यः꣡ स꣢मु꣣द्रा꣢ꣳश्च꣣तु꣢रो꣣ऽस्म꣡भ्य꣢ꣳ सोम वि꣣श्व꣡तः꣢ । आ꣡ प꣢वस्व सह꣣स्रि꣡णः꣢ ॥८७१॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

रायः समुद्राꣳश्चतुरोऽस्मभ्यꣳ सोम विश्वतः । आ पवस्व सहस्रिणः ॥८७१॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

रा꣣यः꣢ । स꣣मुद्रा꣢न् । स꣣म् । उद्रा꣢न् । च꣣तु꣡रः꣢ । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । सो꣣म । विश्व꣡तः꣢ । आ । प꣣वस्व । सहस्रि꣡णः꣢ ॥८७१॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 871 | (कौथोम) 2 » 2 » 14 » 3 | (रानायाणीय) 4 » 5 » 1 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमात्मा और आचार्य से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) विद्या आदि की हमारे अन्दर प्रेरणा करनेवाले, पवित्रकर्त्ता परमात्मन् वा आचार्य आप (अस्मभ्यम्) हमारे लिए (विश्वतः) सब ओर से (रायः) ऐश्वर्य के (सहस्रिणः) सहस्र फल प्रदान करनेवाले (चतुरः) चार (समुद्रान्) समुद्रों को अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को (आ पवस्व) प्रवाहित कर दीजिए ॥३॥ यहाँ धर्म-अर्थ-कम-मोक्ष को धन के समुद्र कहने से उनका समुद्र के समान अगाध तथा परोपकारी होना द्योतित होता है ॥३॥

भावार्थभाषाः -

दयानिधि ईश्वर की और गुरु की कृपा से अध्ययन-अध्यापन, यम-नियम, प्राणायाम, ब्रह्मचर्य, जप, उपासना आदि कर्म से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शीघ्र ही सिद्धि हमें प्राप्त होवे ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमात्माऽऽचार्यश्च प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) विद्यादीनामस्मासु प्रेरक पावक परमात्मन् आचार्य वा ! त्वम् (अस्मभ्यम्) नः (विश्वतः) सर्वतः (रायः) ऐश्वर्यस्य (सहस्रिणः) सहस्रफलप्रदान् (चतुरः) चतुःसंख्यकान् (समुद्रान्) अर्णवान्, धर्मार्थकाममोक्षरूपान् (आ पवस्व) प्रवाहय ॥३॥ अत्र धर्मार्थकाममोक्षेषु रायः समुद्रत्वकथनात् तेषां समुद्रवदगाधत्वं परोपकारित्वं च व्यज्यते ॥३॥

भावार्थभाषाः -

दयानिधेरीश्वरस्य गुरोश्च कृपयाऽध्ययनाध्यापनयमनियमप्राणायाम- ब्रह्मचर्यजपोपासनादिकर्मणा धर्मार्थकाममोक्षाणां सद्यः सिद्धिर्भवेन्नः ॥३॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।३३।६।