वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

ता꣡ हु꣢वे꣣ य꣡यो꣢रि꣣दं꣢ प꣣प्ने꣡ विश्वं꣢꣯ पु꣣रा꣢ कृ꣣त꣢म् । इ꣣न्द्राग्नी꣡ न म꣢꣯र्धतः ॥८५३॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

ता हुवे ययोरिदं पप्ने विश्वं पुरा कृतम् । इन्द्राग्नी न मर्धतः ॥८५३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता꣢ । हु꣣वे । य꣡योः꣢꣯ । इ꣡द꣢म् । प꣣प्ने꣢ । वि꣡श्व꣢꣯म् । पु꣣रा꣢ । कृ꣣त꣢म् । इ꣣न्द्रा꣢ग्नी । इ꣣न्द्र । अग्नी꣡इति꣢ । न । म꣣र्धतः ॥८५३॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 853 | (कौथोम) 2 » 2 » 8 » 1 | (रानायाणीय) 4 » 2 » 4 » 1


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में परमात्मा और जीवात्मा का विषय है।

पदार्थान्वयभाषाः -

मैं (ता) उन इन्द्र और अग्नि अर्थात् परमात्मा और जीवात्मा को (हुवे) बुलाता हूँ, (ययोः) जिनका (इदम्) यह सामने दिखाई देनेवाला (पुरा) पहले का (कृतम्) किया हुआ (विश्वम्) समस्त कार्य (पप्ने) सबके द्वारा स्तुति पाता है। (इन्द्राग्नी) उपासना किया हुआ परमात्मा और उद्बोधन दिया हुआ जीवात्मा दोनों (न मर्धतः) कभी हानि नहीं पहुँचाते, प्रत्युत सदा लाभकारी होते हैं ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा ने जो ब्रह्माण्ड रचा है और जीवात्मा देह धारण करके जिन महान् कार्यों को अपने बुद्धिकौशल से करता है, उनसे उन दोनों का महान् गौरव प्रकट होता है ॥१॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादौ परमात्मजीवात्मविषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

अहम् (ता) तौ इन्द्राग्नी परमात्मजीवात्मानौ (हुवे) आह्वयामि (ययोः) परमात्मजीवात्मनोः (इदम्) एतत् पुरतोऽवलोक्यमानम् (पुरा) प्राक्काले (कृतम्) संपादितम् (विश्वम्) समस्तं कार्यम् (पप्ने) सर्वैः स्तूयते। [पनायते स्तुतिकर्मा, भ्वादिः।] (इन्द्राग्नी) उपासितः परमात्मा उद्बोधितो जीवात्मा च, तौ उभौ (न मर्धतः) कदापि न हिंस्तः, हानिं न कुरुतः प्रत्युत सदा लाभकरौ भवतः [मर्धतिः हिंसाकर्मा] ॥१॥२

भावार्थभाषाः -

परमात्मना यद् ब्रह्माण्डं रचितं जीवात्मा च देहं धृत्वा यानि महान्ति कार्याणि स्वबुद्धिकौशलेन सम्पादयति तैस्तयोर्महद् गौरवं द्योत्यते ॥१॥

टिप्पणी: १. ऋ० ६।६०।४। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयं वायुविद्युत्पक्षे व्याख्यातः।