वी꣣डु꣡ चि꣢दारुज꣣त्नुभि꣣र्गु꣡हा꣢ चिदिन्द्र꣣ व꣡ह्नि꣢भिः । अ꣡वि꣢न्द उ꣣स्रि꣢या꣣ अ꣡नु꣢ ॥८५२॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)वीडु चिदारुजत्नुभिर्गुहा चिदिन्द्र वह्निभिः । अविन्द उस्रिया अनु ॥८५२॥
वी꣣डु꣢ । चि꣣त् । आरुजत्नु꣡भिः꣢ । आ꣣ । रुजत्नु꣡भिः꣢ । गु꣡हा꣢꣯ । चि꣡त् । इन्द्र । व꣡ह्नि꣢꣯भिः । अ꣡वि꣢꣯न्दः । उ꣣स्रि꣡याः꣢ । उ꣣ । स्रि꣡याः꣢꣯ । अ꣡नु꣢꣯ ॥८५२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में योगमार्ग में प्राणायाम का महत्त्व कहा गया है।
हे (इन्द्र) जीवात्मन् ! तू (वीडु चित्) दृढ़ भी व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य आदि विघ्नों को (आरुजद्भिः) चारों ओर से तोड़ते हुए (वह्निभिः) वाहक प्राणों के सहयोग से (गुहा चित्) गुफा में भी विद्यमान अर्थात् विघ्नों से निगूढ़ हुई भी (उस्रियाः) परमात्मा के पास से आती हुई तेज की किरणों को (अनु अविन्दः) एक-एक करके प्राप्त कर लेता है ॥३॥
जैसे सूर्य किरणों को बादल ढक लेता है, वैसे ही परमात्मारूप सूर्य के पास से आती हुई तेज की किरणों को योगमार्ग में उपस्थित विघ्न ढक लेते हैं। प्राणायाम की सहायता से वे विघ्न परास्त किये जा सकते हैं ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ योगमार्गे प्राणायामस्य महत्त्वमाह।
हे (इन्द्र) जीवात्मन् ! त्वम् (वीडु चित्) दृढमपि व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्यादिविघ्नजातम् (आरुजद्भिः) समन्ताद् भञ्जद्भिः (वह्निभिः) वाहकैः मरुद्भिः प्राणैः, तेषां सहयोगेनेत्यर्थः (गुहा चित्) गुहायामपि विद्यमानाः, विघ्नैनिर्गूढा अपि इति यावत् (उस्रियाः) परमात्मनः सकाशादागच्छतः तेजोरश्मीन्२ (अनु अविन्दः) अनुक्रमेण प्राप्नोषि ॥३॥३
यथा सूर्यकिरणान् मेघ आवृणोति तथैव परमात्मसूर्यस्य सकाशादागच्छतः तेजःकिरणान् योगमार्गे समुपस्थिता विघ्ना आवृण्वन्ति। प्राणायामस्य साहाय्येन ते विघ्नाः पराभवितुं शक्यन्ते ॥३॥४