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स꣣ख्ये꣡ त꣢ इन्द्र वा꣣जि꣢नो꣣ मा꣡ भे꣢म शवसस्पते । त्वा꣢म꣣भि꣡ प्र नो꣢꣯नुमो꣣ जे꣡ता꣢र꣣म꣡परा꣢जितम् ॥८२८॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

सख्ये त इन्द्र वाजिनो मा भेम शवसस्पते । त्वामभि प्र नोनुमो जेतारमपराजितम् ॥८२८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स꣣ख्ये꣢ । स꣣ । ख्ये꣢ । ते꣣ । इन्द्र । वाजि꣡नः꣢ । मा । भे꣣म । शवसः । पते । त्वा꣢म् । अ꣣भि꣢ । प्र । नो꣣नुमः । जे꣡ता꣢꣯रम् । अ꣡प꣢꣯राजितम् । अ । प꣣राजितम् ॥८२८॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 828 | (कौथोम) 2 » 1 » 19 » 2 | (रानायाणीय) 3 » 6 » 2 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में जगदीश्वर वा आचार्य से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (शवसः पते) बल के अधीश्वर (इन्द्र) परमैश्वर्यवान्, अविद्याविदारक जगदीश्वर वा आचार्य ! (वाजिनः) बलवान् हम (ते) आपकी (सख्ये) मित्रता में रहते हुए (मा भेम) भयभीत न हों। (जेतारम्) सब विघ्नों पर विजय पानेवाले, (अपराजितम्) किसी भी बाधा से पराजित न होनेवाले (त्वाम्) तुझ जगदीश्वर वा आचार्य को (अभि) लक्ष्य करके, हम (प्र नोनुमः) अतिशय बार-बार स्तुति करते हैं ॥२॥

भावार्थभाषाः -

ब्रह्मबल, आत्मबल, विद्याबल आदियों में बलिष्ठ, सब विपत्तियों पर विजय पानेवाले, किसी से भी पराजित न होनेवाले जगदीश्वर और आचार्य यदि हमारे साथी हो जाते हैं तो निर्भय रहते हुए हम सम्पूर्ण उत्कर्ष को पा सकते हैं ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ जगदीश्वरमाचार्यं च प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (शवसः पते) बलस्य अधीश्वर (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् अविद्याविदारक जगदीश्वर आचार्य वा ! (वाजिनः) बलवन्तो वयम् (ते) तव (सख्ये) सखित्वे (मा भेम) मा भैष्म। [ञिभी भये इत्यस्माल्लुङि बहुलं छन्दसीति च्लेर्लुक्।] (जेतारम्) सर्वविघ्नविजयिनम्, (अपराजितम्) कयापि बाधया न पराजितम् (त्वाम्) जगदीश्वरमाचार्यं वा (अभि) अभिलक्ष्य, वयम् (प्र नोनुमः) अतिशयेन पुनः पुनः स्तुमः। [णु स्तुतौ इत्यस्माद् यङ्लुकि प्रयोगः।] ॥–२॥२

भावार्थभाषाः -

ब्रह्मबलात्मबलविद्याबलादिषु बलिष्ठो निखिलविपद्विजेता केनाप्यपराजितो जगदीश्वर आचार्यश्च यद्यस्माकं सखा जायते तर्हि निर्भयाः सन्तो वयं सर्वमप्युत्कर्षमधिगन्तुं पारयामः ॥–२॥

टिप्पणी: १. ऋ० १।११।२, ‘प्र णो॑नुमो॒’ इति पाठः। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमेतमीश्वरविषये सभाध्यक्षविषये च व्याख्यातवान्।