अ꣣या꣢ चि꣣त्तो꣢ वि꣣पा꣢꣫नया꣣ ह꣡रिः꣢ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या । यु꣢जं꣣ वा꣡जे꣢षु चोदय ॥८०५॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)अया चित्तो विपानया हरिः पवस्व धारया । युजं वाजेषु चोदय ॥८०५॥
अ꣣या꣢ । चि꣣त्तः꣢ । वि꣣पा꣢ । अ꣣न꣡या꣢ । ह꣡रिः꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । यु꣡ज꣢꣯म् । वा꣡जे꣢꣯षु । चो꣣दय ॥८०५॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में पुनः परमात्मा का विषय है।
हे पवमान सोम ! हे पवित्रकर्त्ता परमात्मन् ! (विपा) मुझ मेधावी के द्वारा (चित्तः) जाने हुए (हरिः) दुःखों एवं पापों के हर्त्ता आप (अया) वेगवती (अनया) इस (धारया) आनन्द-धारा से (पवस्व) मुझ स्तोता को पवित्र कीजिए। (युजम्) अपने सखा मुझको (वाजेषु) जीवनसंग्रामों में (चोदय) विजय के लिए प्रेरित कीजिए ॥३॥
स्तुति किया गया परमात्मा स्तोताओं को आनन्द-धाराओं से सींचकर, बल देकर देवासुरसंग्रामों में विजयी करता है ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनः परमात्मविषयमाह।
हे पवमान सोम ! हे पवित्रकर्त्तः परमात्मन् ! (विपा) मेधाविना मया। [विप इति मेधाविनामसु पठितम्। निघं० ३।१५।] (चित्तः) विज्ञातः, (हरिः) दुःखानां पापानां च हर्ता त्वम् (अया) अयया सवेगया। [अय गतौ, पचाद्यच्। स्त्रियाम् अया। ततस्तृतीयैकवचने ‘सुपां सुलुक्०’। अ० ७।१।३९ इति विभक्तेराकारादेशः।] (अनया) एतया पाविकया (धारया) आनन्दधारया (पवस्व) स्तोतारं मां पुनीहि। (युजम्) सखायं माम् (वाजेषु) जीवनसंग्रामेषु (चोदय) विजयाय प्रेरय ॥३॥
स्तुतः परमात्मा स्तोतॄनानन्दधारया संसिच्य बलं प्रदाय देवासुरसंग्रामेषु विजयिनं कुरुते ॥३॥