इ꣢न्द्र꣣मि꣢द्गा꣣थि꣡नो꣢ बृ꣣ह꣡दिन्द्र꣢꣯म꣣र्के꣡भि꣢र꣣र्कि꣡णः꣢ । इ꣢न्द्रं꣣ वा꣡णी꣢रनूषत ॥७९६॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)इन्द्रमिद्गाथिनो बृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः । इन्द्रं वाणीरनूषत ॥७९६॥
इ꣡न्द्र꣢꣯म् । इत् । गा꣣थि꣡नः꣢ । बृ꣣ह꣢त् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣र्के꣡भिः꣢ । अ꣣र्कि꣡णः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । वा꣡णीः꣢꣯ । अ꣣नूषत ॥७९६॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में १९८ क्रमाङ्क पर परमात्मा के पक्ष में व्याख्यात की जा चुकी है। यहाँ जीवात्मा का विषय कहा जा रहा है।
(इन्द्रम्) देह के अधिष्ठाता, काम-क्रोध आदि शत्रुओं को पराजित करनेवाले वीर जीवात्मा की (इत्) निश्चय ही (गाथिनः) गायक लोग (बृहत्) बहुत अधिक (अनूषत) स्तुति करते हैं। (इन्द्रम्) जीवात्मा की (अर्किणः) मन्त्रपाठी लोग (अर्कैः) वेदमन्त्रों से (अनूषत) स्तुति करते हैं। (इन्द्रम्) उसी जीवात्मा की (वाणीः) अन्य वाणियाँ (अनूषत) स्तुति करती हैं ॥१॥
जीवात्मा ही देहराज्य का सम्राट् है, जो मन, बुद्धि, प्राण, इन्द्रिय आदियों को यथास्थान बैठाकर देहराज्य का सञ्चालन करता है ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १९८ क्रमाङ्के परमात्मपक्षे व्याख्याता। अत्र जीवात्मविषय उच्यते।
(इन्द्रम्) देहाधिष्ठातारं कामक्रोधादिशत्रुविद्रावकं वीरं जीवात्मानम् (इत्) किल (गाथिनः) गाथो गानं येषामस्तीति ते गाथिनः गायकाः (बृहत्) महत् (अनूषत) स्तुवन्ति। (इन्द्रम्) जीवात्मानम् (अर्किणः) मन्त्रपाठिनः (अर्कैः) वेदमन्त्रैः (अनूषत) स्तुवन्ति।(इन्द्रम्) तमेव जीवात्मानम् (वाणीः) इतराः वाचः (अनूषत) स्तुवन्ति ॥१॥२
जीवात्मैव देहराज्यस्य सम्राड् विद्यते, यो मनोबुद्धिप्राणेन्द्रियाणि यथास्थानं सन्निधाय देहराज्यं सञ्चालयति ॥१॥