ये꣡ ते꣢ प꣣वि꣡त्र꣢मू꣣र्म꣡यो꣢ऽभि꣣क्ष꣡र꣢न्ति꣣ धा꣡र꣢या । ते꣡भि꣢र्नः सोम मृडय ॥७८८॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)ये ते पवित्रमूर्मयोऽभिक्षरन्ति धारया । तेभिर्नः सोम मृडय ॥७८८॥
ये꣢ । ते꣣ । पवि꣡त्र꣢म् । ऊ꣣र्म꣡यः꣢ । अ꣣भिक्ष꣡र꣢न्ति । अ꣣भि । क्ष꣡र꣢꣯न्ति । धा꣡र꣢꣯या । ते꣡भिः꣢꣯ । नः꣣ । सोम । मृडय ॥७८८॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में फिर उन्हीं को सम्बोधन है।
हे (सोम) ज्ञान के प्रेरक परमात्मन् वा आचार्य ! (ये ते) जो आपकी (ऊर्मयः) आनन्दरस और ज्ञानरस की लहरें (धारया) धारारूप से (पवित्रम्) पवित्र हृदय को (अभि) लक्ष्य करके (क्षरन्ति) बहती हैं, (तेभिः) उनसे (नः) हमें (मृडय) सुखी कीजिए ॥२॥
परमेश्वर स्तोताओं को आनन्दरस की लहरों से और आचार्य शिष्यों को ज्ञानरस की लहरों से तरङ्गित करते हैं ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि तावेव सम्बोध्येते।
हे (सोम) ज्ञानप्रेरक परमात्मन् आचार्य वा ! (ये ते) ये तव (ऊर्मयः) आनन्दरसस्य ज्ञानरसस्य वा तरङ्गाः (धारया) धारारूपेण (पवित्रम्) पावनं हृदयम् (अभि) अभिलक्ष्य (क्षरन्ति) प्रवहन्ति(तेभिः) तैः (नः) अस्मान् (मृडय) सुखय ॥२॥
परमेश्वरः स्तोतॄनानन्दरसतरङ्गैराचार्यश्च शिष्यान् ज्ञानरसतरङ्गैस्तरङ्गयतः ॥२॥