या꣡ ते꣢ भी꣣मा꣡न्यायु꣢꣯धा ति꣣ग्मा꣢नि꣣ स꣢न्ति꣣ धू꣡र्व꣢णे । र꣡क्षा꣢ समस्य नो नि꣣दः꣢ ॥७८०॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)या ते भीमान्यायुधा तिग्मानि सन्ति धूर्वणे । रक्षा समस्य नो निदः ॥७८०॥
या । ते꣣ । भीमा꣡नि꣢ । आ꣡यु꣢꣯धा । ति꣣ग्मा꣡नि꣢ । स꣡न्ति꣢꣯ । धू꣡र्व꣢꣯णे । र꣡क्ष꣢꣯ । स꣣मस्य । नः । निदः꣢ ॥७८०॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में फिर उन्हीं से प्रार्थना है।
हे पवमान सोम ! हे कर्मशूर जगदीश्वर, आचार्य और राजन् ! (धूर्वणे) हिंसक के लिए (या) जो (ते) आपके (भीमानि) भयंकर, (तिग्मानि) तीक्ष्ण (आयुधा) हथियार (सन्ति) हैं, उनके द्वारा आप (समस्य) सब शत्रुओं से की जानेवाली (निदः) निन्दा से (नः) हमें (रक्ष) बचाइये ॥३॥ यहाँ अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥३॥
जगदीश्वर दण्डशक्तिरूप शस्त्रास्त्रों से, आचार्य ब्रह्मतेजरूप शस्त्रास्त्रों से और राजा भौतिक शस्त्रास्त्रों से दुष्टों की दुष्टता को दूर करके उनसे की जानेवाली निन्दा से मनुष्यों, शिष्यों और प्रजाजनों की रक्षा करें ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि तानेव प्रार्थयते।
हे पवमान सोम ! हे कर्मशूर जगदीश्वर आचार्य नृपते वा ! (धूर्वणे) हिंसकाय। [धुर्वी हिंसार्थः। धूर्वति हिनस्ति यः स धूर्वा तस्मै।] (या) यानि (ते) तव (भीमानि) भयङ्कराणि, (तिग्मानि) तीक्ष्णानि (आयुधा) आयुधानि [सर्वत्र ‘शेश्छन्दसि बहुलम्। अ० ६।१।७०’ इति शेर्लोपः।] (सन्ति) वर्त्तन्ते, तैः (समस्य) सर्वस्य शत्रोः (निदः) निन्दायाः (नः) अस्मान् (रक्ष) त्रायस्व ॥३॥ अत्रार्थश्लेषालङ्कारः ॥३॥
जगदीश्वरो दण्डशक्तिरूपैराचार्यो ब्रह्मतेजोरूपैर्नृपतिश्च भौतिकैः शस्त्रास्त्रैर्दुष्टानां दुष्टतां निराकृत्य तत्कृतान्निन्दनाद् मनुष्यान् शिष्यान् प्रजाजनांश्च रक्षन्तु ॥३॥