तु꣢भ्ये꣣मा꣡ भुव꣢꣯ना कवे महि꣣म्ने꣡ सो꣢म तस्थिरे । तु꣡भ्यं꣢ धावन्ति धे꣣न꣡वः꣢ ॥७७७॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)तुभ्येमा भुवना कवे महिम्ने सोम तस्थिरे । तुभ्यं धावन्ति धेनवः ॥७७७॥
तु꣡भ्य꣢꣯ । इ꣡मा꣢ । भु꣡व꣢꣯ना । क꣣वे । महिम्ने꣢ । सो꣣म । तस्थिरे । तु꣡भ्य꣢꣯म् । धा꣣वन्ति । धेन꣡वः꣢ ॥७७७॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में सोम जगदीश्वर की महिमा का वर्णन है।
हे (कवे) मेधावी, दूरदर्शी (सोम) जगदीश्वर ! (इमा भुवना) ये लोक-लोकान्तर (तुभ्य) आपकी ही पूजा के लिए (महिम्ने तस्थिरे) महिमावान् हुए हैं। (तुभ्यम्) आपकी ही पूजा के लिए (धेनवः) गौएँ, मेघ-मालाएँ और सूर्यकिरणें (धावन्ति) दौड़ लगा रही हैं ॥३॥
इस विशाल ब्रह्माण्ड में सूर्य, चाँद, तारे, भूमि, ऋतुएँ, नदियाँ, समुद्र, मेघ-घटाएँ, गौएँ, घोड़े, मनुष्य, मङ्गल-बुध-बृहस्पति आदि ग्रह सब परमेश्वर की ही महिमा का गान कर रहे हैं ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ सोमस्य जगदीश्वरस्य महिमानं वर्णयति।
हे (कवे) मेधाविन् क्रान्तदर्शिन् (सोम) जगदीश्वर ! (इमा भुवना) इमानि भुवनानि लोकलोकान्तराणि (तुभ्य) तुभ्यम्, त्वत्पूजार्थम् एव। [मकारलोपश्छान्दसः।] (महिम्ने तस्थिरे) महिमवन्ति जातानि। (तुभ्यम्) त्वत्पूजार्थमेव (धेनवः२) गावः मेघमालाः सूर्यदीधितयो वा (धावन्ति) वेगेन गच्छन्ति ॥३॥
विशाले ब्रह्माण्डेऽस्मिन् सूर्यश्चन्द्रस्तारका भूमिर्ऋतवो नद्यः समुद्रा मेघघटा धेनवोऽश्वा मनुष्या मङ्गलबुधबृहस्पत्यादयो ग्रहाः सर्वाणि परमेश्वरस्यैव महिमानं गायन्ति ॥३॥