स꣡ घा꣢ नो꣣ यो꣢ग꣣ आ꣡ भु꣢व꣣त्स꣢ रा꣣ये꣡ स पुर꣢꣯न्ध्या । ग꣢म꣣द्वा꣡जे꣢भि꣣रा꣡ स नः꣢꣯ ॥७४२॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)स घा नो योग आ भुवत्स राये स पुरन्ध्या । गमद्वाजेभिरा स नः ॥७४२॥
सः । घ꣣ । नः । यो꣡गे꣢꣯ । आ । भु꣣वत् । सः꣢ । रा꣣ये꣢ । सः । पु꣡र꣢꣯न्ध्या । पु꣡र꣢꣯म् । ध्या꣣ । ग꣡म꣢꣯त् । वा꣡जे꣢꣯भिः । आ । सः । नः꣣ ॥७४२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे फिर उसी विषय का वर्णन है।
(सः) वह प्रसिद्ध (इन्द्र) परमात्मा (नः) हमारे (योगे) अष्टाङ्गयोग की सिद्धि में (आ भुवत्) सहायक होवे। (सः) वह (राये) अणिमा, लघिमा, महिमा आदि ऐश्वर्यों की प्राप्ति के लिए, हमारा सहायक होवे। (सः) वह (पुरन्ध्या) पालन करनेवाली बुद्धि से हमें संयुक्त करे। (सः) वह (वाजेभिः) अध्यात्म-बलों के साथ (नः) हमारे पास (आगमत्) आये ॥३॥
योगसिद्धि के मार्ग में जो विघ्न उपस्थित होते हैं, वे परमात्मा की सहायता से दूर किये जा सकते हैं ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।
(सः) असौ प्रसिद्धः इन्द्रः परमात्मा, (नः) अस्माकम् (योगे) अष्टाङ्गयोगसाधने (आ भुवत्) सहायको भवतु। (सः) असौ (राये) अणिमलघिममहिमाद्यैश्वर्यप्राप्तये, अस्माकं सहायको भवतु। (सः) असौ (पुरन्ध्या) पालनकर्त्र्या बुद्ध्या अस्मान् संयुनक्तु इति शेषः। (सः) असौ (वाजेभिः) अध्यात्मबलैः सह (नः) अस्मान् (आ गमत्) आगच्छतु ॥३॥५
योगसिद्धिमार्गे ये विघ्नाः समुपतिष्ठन्ते ते परमात्मसाहाय्येन निराकर्तुं शक्यन्ते ॥३॥