आ꣢꣫ त्वेता꣣ नि꣡ षी꣢द꣣ते꣡न्द्र꣢म꣣भि꣡ प्र गा꣢꣯यत । स꣡खा꣢य꣣ स्तो꣡म꣢वाहसः ॥७४०॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)आ त्वेता नि षीदतेन्द्रमभि प्र गायत । सखाय स्तोमवाहसः ॥७४०॥
आ꣢ । तु । आ । इ꣣त । नि꣢ । सी꣣दत । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣भि꣢ । प्र । गा꣣यत । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । स्तो꣡म꣢꣯वाहसः । स्तो꣡म꣢꣯ । वा꣣हसः ॥७४०॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में क्रमाङ्क १६४ पर परमात्मा तथा राष्ट्र के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ आत्मोद्बोधन का विषय है।
हे (स्तोमवाहसः) गीतों को गानेवाले (सखायः) मित्रो ! तुम (तु) शीघ्र ही (आ एत) आओ, (निषीदत) बैठो, (इन्द्रम् अभि) अपने अन्तरात्मा को लक्ष्य करके (प्र गायत) भली-भाँति उद्बोधन-गीत गाओ ॥१॥
परस्पर मिलकर आत्मा को उद्बोधन देने से वह शक्ति जागती है, जिससे मार्ग की सभी बाधाएँ हटायी जा सकती हैं ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके १६४ क्रमाङ्के परमात्मपक्षे राष्ट्रपक्षे च व्याख्याता। अत्र आत्मोद्बोधनमाह।
हे (स्तोमवाहसः) स्तोमान् गीतानि वाहयन्ति गायन्तीति तादृशाः (सखायः) सुहृदः ! यूयम् (तु) क्षिप्रम् (आ एत) आगच्छत, (नि षीदत) उपविशत, (इन्द्रम् अभि) स्वान्तरात्मानमभिलक्ष्य (प्र गायत) प्रकृष्टतया उद्बोधनगीतानि उच्चारयत ॥१॥२
परस्परमेकीभूयाऽऽत्मोद्बोधनेन सा शक्तिर्जागर्ति यथा मार्गस्य सर्वा अपि बाधा निराकर्त्तुं शक्यन्ते ॥१॥