व꣣रिवोधा꣡त꣢मो भुवो꣣ म꣡ꣳहि꣢ष्ठो वृत्र꣣ह꣡न्त꣢मः । प꣢र्षि꣣ रा꣡धो꣢ म꣣घो꣡ना꣢म् ॥६९१॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)वरिवोधातमो भुवो मꣳहिष्ठो वृत्रहन्तमः । पर्षि राधो मघोनाम् ॥६९१॥
वरिवोधा꣡त꣢मः । व꣣रिवः । धा꣡त꣢꣯मः । भु꣣वः । म꣡ꣳहि꣢꣯ष्ठः । वृ꣣त्र꣡हन्त꣢मः । वृ꣣त्र । ह꣡न्त꣢꣯मः । प꣡र्षि꣢꣯ । रा꣡धः꣢꣯ । म꣣घो꣡ना꣢म् ॥६९१॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।
हे इन्द्र परमात्मन् ! आप (वरिवोधातमः) अतिशय ऐश्वर्य को धारण करनेवाले, (मंहिष्ठः) सबसे बढ़कर दानी, (वृत्रहन्तमः) सबसे बड़े पापहन्ता (भुवः) सिद्ध हुए हो। आप ही (मघोनाम्) हम भौतिक धनों के धनियों को (राधः) सत्य, न्याय, दया, मोक्ष, आदि दिव्य धन (पर्षि) प्रदान करो ॥३॥
वही मनुष्य वस्तुतः धनी है, जो भौतिक धन के साथ अध्यात्म धन भी कमाता है ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमात्मानं प्रार्थयते।
हे इन्द्र परमात्मन् ! त्वम् (वरिवोधातमः) धनानाम् अतिशयेन धारयिता। [वरिवः इति धननाम निघ० २।१०।] (मंहिष्ठः२) दातृतमः [मंहते दानकर्मा। निघ० ३।२०।] (वृत्रहन्तमः) पापानाम् अतिशयेन हन्ता च (भुवः) जातोऽसि। त्वमेव (मघोनाम्) भौतिकधनवताम् अस्माकम् (राधः) सत्यन्यायदयामोक्षादिकं दिव्यं धनम् (पर्षि) प्रयच्छ। [पृ पालनपूरणयोः जुहोत्यादिः, लेटि मध्यमैकवचने छान्दसं रूपम्।] ॥३॥
स एव वस्तुतो धनिको यो भौतिकधनेन साकमध्यात्मं धनमपि समर्जति ॥३॥