हि꣣न्वानो꣢ हे꣣तृ꣡भि꣢र्हि꣣त꣡ आ वाजं꣢꣯ वा꣣꣬ज्य꣢꣯क्रमीत् । सी꣡द꣢न्तो व꣣नु꣡षो꣢ यथा ॥६५५॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)हिन्वानो हेतृभिर्हित आ वाजं वाज्यक्रमीत् । सीदन्तो वनुषो यथा ॥६५५॥
हि꣣न्वानः꣢ । हे꣣तृ꣡भिः꣢ । हि꣣तः꣢ । आ । वा꣡जम्꣢꣯ । वा꣣जी꣢ । अ꣣क्रमीत् । सी꣡द꣢꣯न्तः । व꣣नु꣡षः꣢ । य꣣था ॥६५५॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में यह कहा गया है कि हृदय में धारण किया हुआ परमात्मारूप सोम क्या करता है।
(हेतृभिः) प्रेरक गुरुजनों के द्वारा (हितः) शिष्य के आत्मा में स्थापित किया हुआ, (हिन्वानः) तृप्ति प्रदान करता हुआ, (वाजी) बलवान् परमात्मा-रूप सोम (वाजम्) अन्तःकरण में चल रहे देवासुरसंग्राम पर (आ अक्रमीत्) चारों ओर से आक्रमण कर देता है, (यथा) जैसे (सीदन्तः) प्रयाण करते हुए (वनुषः) हिंसक योद्धा लोग [शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं।] ॥२॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥२॥
हृदय में धारण किया हुआ परमेश्वर आन्तरिक देवासुरसंग्राम में अपने उपासक को सदा विजय दिलाता है ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ हृदि धारितः परमात्मसोमः किं करोतीत्याह।
(हेतृभिः) प्रेरकैः गुरुभिः। [हि गतौ वृद्धौ च, तृच्।] (हितः) शिष्यस्य आत्मनि स्थापितः। [निष्ठायां दधातेर्हिः।] (हिन्वानः) प्रीणयन्। [हिवि प्रीणनार्थः, आत्मनेपदं छान्दसम्।] (वाजी) बलवान् परमात्मसोमः (वाजम्) अन्तःकरणे प्रवृत्तं देवासुरसंग्रामम्। [वाज इति बलनामसु संग्रामनामसु च पठितम्। निघं० २।९, २।७।] (आ अक्रमीत्) आक्रामति। कथम् ? (यथा) येन प्रकारेण (सीदन्तः) प्रयान्तः। [षदलृ विशरणगत्यवसादनेषु।] (वनुषः२) हिंसकाः योद्धारः। [वनुष्यतिर्हन्तिकर्मा। निघं० ५।२।८।] शत्रून् आक्रामन्ति तद्वत् ॥२॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥२॥
हृदि धृतः परमेश्वरो मानसे देवासुरसंग्रामे स्वोपासकं सदा विजयिनं कुरुते ॥२॥