स꣡ नः꣢ पवस्व꣣ शं꣢꣫ गवे꣣ शं꣡ जना꣢꣯य꣣ श꣡मर्व꣢꣯ते । श꣡ꣳ रा꣢ज꣣न्नो꣡ष꣢धीभ्यः ॥६५३॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)स नः पवस्व शं गवे शं जनाय शमर्वते । शꣳ राजन्नोषधीभ्यः ॥६५३॥
सः꣢ । नः꣣ । पवस्व । श꣢म् । ग꣡वे꣢꣯ । शम् । ज꣡नाय꣢꣯ । शम् । अ꣡र्वते꣢꣯ । शम् । रा꣣जन् । ओ꣡ष꣢꣯धीभ्यः । ओ꣡ष꣢꣯ । धी꣣भ्यः ॥६५३॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमेश्वर से प्रार्थना की गयी है।
हे (राजन्) विश्व के सम्राट् परमात्मन् ! (सः) वह प्रसिद्ध आप (नः) हमारे (गवे) गाय, वाणी और इन्द्रियों आदि के लिए (शम्) कल्याण को,(जनाय) माता, पिता, पुत्र, पौत्र, पत्नी, सेवक आदि जनों के लिए (शम्) कल्याण को, (अर्वते) घोड़े, प्राण और शत्रुहिंसक वीर के लिए (शम्) कल्याण को, (ओषधीभ्यः) धान, जौ, गेहूँ, लता, गुल्म, वृक्ष, वनस्पति आदियों के लिए और दोषनिवारक शुद्ध चित्तवृत्तियों के लिए (शम्) कल्याण को (पवस्व) बरसाइये ॥३॥
परमेश्वर की उपासना से सबको शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रिय कल्याण प्राप्त करना योग्य है ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमेश्वरः प्रार्थ्यते।
हे (राजन्) विश्वसम्राट् परमात्मन् ! (सः) प्रसिद्धः त्वम् (नः) अस्माकम् (गवे) धेनवे, वाचे, इन्द्रियादिकाय वा (शम्) कल्याणम्, (जनाय) मातापितृपुत्रपौत्रकलत्रसेवकादिजनाय (शम्) कल्याणम्, (अर्वते) अश्वाय, प्राणाय, शत्रुहिंसकाय वीराय वा (शम्) कल्याणम्, (ओषधीभ्यः) व्रीहियवगोधूमलतागुल्मवृक्षवनस्पत्यादिभ्यो दोषनिवारिकाभ्यः शुद्धचित्तवृत्तिभ्यो वा (शम्) कल्याणम् (पवस्व) प्रक्षारय। [ओषधय ओषद् धयन्तीति वा, ओषत्येना धयन्तीति वा, दोषं धयन्तीति वा। निरु० ९।२७] ॥३॥
परमेश्वरोपासनेन सर्वैर्दैहिकं मानसमात्मिकं पारिवारिकं सामाजिकं राष्ट्रियं च कल्याणं प्राप्तुं योग्यम् ॥३॥