त꣣र꣡णि꣢र्वि꣣श्व꣡द꣢र्शतो ज्योति꣣ष्कृ꣡द꣢सि सूर्य । वि꣢श्व꣣मा꣡भा꣢सि रोच꣣न꣢म् ॥६३५॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य । विश्वमाभासि रोचनम् ॥६३५॥
त꣣र꣡णिः꣢ । वि꣣श्व꣡द꣢र्शतः । वि꣣श्व꣢ । द꣣र्षतः । ज्योतिष्कृ꣢त् । ज्यो꣣तिः । कृ꣢त् । अ꣣सि । सूर्य । वि꣡श्व꣢꣯म् । आ । भा꣣सि । रोचन꣢म् ॥६३५॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में पुनः सूर्य और परमात्मा का वर्णन है।
हे (सूर्य) सूर्य के समान तेजस्वी सर्वप्रेरक परमात्मन् ! आप (तरणिः) भवसागर से तरानेवाले, (विश्वदर्शतः) सब मुमुक्षुओं से दर्शन किये जाने योग्य और सर्वद्रष्टा, तथा (ज्योतिष्कृत्) विवेकख्यातिरूप अन्तर्ज्योति को उत्पन्न करनेवाले (असि) हो। और (विश्वम्) समस्त (रोचनम्) चमकीले ब्रह्माण्ड को (आभासि) चारों ओर से प्रकाशित करते हो ॥ भौतिक सूर्य भी (तरणिः) रोगों से तरानेवाला, (विश्वदर्शतः) अपने प्रकाश से सब पदार्थों को दिखानेवाला और (ज्योतिष्कृत्) पृथिवी आदि लोकों में प्रकाश देनेवाला है और (विश्वम्) सब (रोचनम्) प्रदीप्त मङ्गल, बुध, चन्द्रमा आदि ग्रहोपग्रहों को प्रकाशित करता है ॥९॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥९॥
सूर्य तथा परमात्मा के मन्त्रोक्त गुण-धर्मों को जानकर सूर्य के सेवन द्वारा रोगादि का निवारण करना चाहिए तथा परमात्मा के ध्यान द्वारा दुःखों को दूर कर मोक्ष का आनन्द प्राप्त करना चाहिए ॥९॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
पुनरपि सूर्यः परमात्मा च वर्ण्यते।
हे (सूर्य) आदित्यवद् भासमान सर्वप्रेरक परमात्मन् ! त्वम् (तरणिः) भवसागरात् तारयिता, (विश्वदर्शतः) सर्वैर्मुमुक्षुभिर्दर्शनीयः सर्वद्रष्टा वा, (ज्योतिष्कृत्) विवेकख्यातिरूपस्य अन्तर्ज्योतिषः कर्ता (असि) विद्यसे। किञ्च, (विश्वम्) सकलम् (रोचनम्) रोचमानं ब्रह्माण्डम् (आभासि) समन्तात् प्रकाशयसि ॥ भौतिकः सूर्योऽपि (तरणिः) रोगेभ्यस्तारकः, (विश्वदर्शतः) स्वप्रकाशेन सर्वेषां पदार्थानां दर्शयिता, (ज्योतिष्कृत्) पृथिव्यादिलोकेषु प्रकाशस्य कर्त्ता च अस्ति। किञ्च, (विश्वम्) सर्वम् (रोचनम्) दीप्तं मङ्गलबुधचन्द्रादिकं ग्रहोपग्रहगणम् आभाति समन्तात् प्रकाशयति ॥९॥२ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥९॥
सूर्यपरमात्मनोर्मन्त्रोक्तान् गुणधर्मान् ज्ञात्वा सूर्यसेवनेन रोगाद्या निवारणीयाः, परमात्मध्यानेन च दुःखानि परिहृत्य मोक्षानन्दः प्रापणीयः ॥९॥