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इ꣣मं꣡ वृष꣢꣯णं कृणु꣣तै꣢꣫क꣣मि꣢न्माम् ॥५९१

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स्वर-रहित-मन्त्र

इमं वृषणं कृणुतैकमिन्माम् ॥५९१

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ꣣म꣢म् । वृ꣡ष꣢꣯णम् । कृ꣣णुत । ए꣡क꣢꣯म् । इत् । माम् ॥५९१॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 591 | (कौथोम) 6 » 3 » 1 » 6 | (रानायाणीय) 6 » 1 » 6


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगली ऋचा का देवता ‘विश्वेदेवाः’ है। उनसे प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे परमात्मा, जीवात्मा, मन, बुद्धि आदि सब देवो, सब विद्वान् गुरुजनो तथा राज्याधिकारियो ! तुम (इमम्) इस (माम्) मुझको (एकम् इत्) अद्वितीय (वृषणम्) मेघ के समान धन, अन्न, सुख आदि की वर्षा करनेवाला (कृणुत) कर दो ॥६॥

भावार्थभाषाः -

जैसे परमात्मा और शरीर में स्थित, समाज में स्थित तथा राष्ट्र में स्थित सब देव परोपकारी हैं, वैसे ही उनसे प्रेरणा लेकर मैं भी निर्धनों के ऊपर धन, अन्न आदि की वर्षा करनेवाला, अनाथों का नाथ और दूसरों के दुःख को हरनेवाला बनूँ ॥६॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ विश्वेदेवाः देवताः। तान् प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे विश्वेदेवाः परमात्मजीवात्ममनोबुद्ध्यादयः, सर्वे विद्वांसो गुरुजनाः, राज्याधिकारिणश्च ! यूयम् (इमम्) पुरो दृश्यमानम् (माम्) प्रार्थिनम् (एकम् इत्) अद्वितीयमेव (वृषणम्) धनान्नसुखादीनां मेघवद् वर्षकम् (कृणुत) सम्पादयत ॥६॥

भावार्थभाषाः -

यथा सोमः परमात्मा, शरीरस्थाः समाजस्था राष्ट्रस्थाः सर्वे देवाश्च परोपकारिणः सन्ति, तथा तेषां सकाशात् प्रेरणां गृहीत्वाऽहमपि निर्धनानामुपरि धनान्नादीनां वृष्टिकरो दीनानामाश्रयोऽनाथानां नाथः परदुःखविद्रावकश्च भूयासम् ॥६॥