तं꣡ वः꣢ सखायो꣣ म꣡दा꣢य पुना꣣न꣢म꣣भि꣡ गा꣢यत । शि꣢शुं꣣ न꣢ ह꣣व्यैः꣡ स्व꣢दयन्त गू꣣र्ति꣡भिः꣢ ॥५६९॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)तं वः सखायो मदाय पुनानमभि गायत । शिशुं न हव्यैः स्वदयन्त गूर्तिभिः ॥५६९॥
त꣢म् । वः꣣ । सखायः । स । खायः । म꣡दा꣢꣯य । पु꣣नान꣢म् । अ꣣भि꣢ । गा꣣यत । शि꣡शु꣢꣯म् । न । ह꣣व्यैः꣢ । स्व꣣दयन्त । गूर्ति꣡भिः꣢ ॥५६९॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में पुनः उसी विषय को कहा गया है।
हे (सखायः) मित्रो ! (वः) तुम (पुनानम्) पवित्र करनेवाले (तम्) उस प्रसिद्ध सोम नामक परमात्मा को (अभि) लक्ष्य करके (मदाय) आनन्दप्राप्ति के लिए (गायत) सामगान करो। उपासक जन उस परमात्मा को (हव्यैः) आत्मसमर्पणों द्वारा और (गूर्तिभिः) स्तुतियों तथा उद्यमों द्वारा (स्वदयन्त) प्रसन्न करते हैं, (शिशुं न) जैसे किसी शिशु को (हव्यैः) खिलौने आदि देय पदार्थों द्वारा और (गूर्तिभिः) गोद में उठाने के द्वारा माताएँ प्रसन्न करती हैं ॥४॥ इस मन्त्र में श्लिष्टोपमालङ्कार है ॥४॥
आराधना और पुरुषार्थ से प्रसन्न किया हुआ परमेश्वर पवित्रता आदि के सम्पादन द्वारा और आनन्द-प्रदान द्वारा आराधक का हित करता है ॥४॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे (सखायः) सुहृदः (वः) यूयम् (पुनानम्) पवित्रीकुर्वाणम् (तम्) प्रसिद्धं सोमाख्यं परमात्मानम् (अभि) अभिलक्ष्य (मदाय) आनन्दलाभाय (गायत) सामगानं कुरुत। उपासकाः तं परमात्मानम् (हव्यैः) आत्मसमर्पणैः (गूर्तिभिः२) स्तुतिभिः उद्यमैश्च। गॄ शब्दे, गूर उद्यमने, ततः क्तिन्। (स्वदयन्त) प्रसादयन्ति। स्वद आस्वादने, णिजन्तः, लडर्थे लङ्, अडागमाभावश्छान्दसः। (शिशुं न) शिशुं यथा (हव्यैः) देवपदार्थैः क्रीडनकादिभिः (गूर्तिभिः) क्रोडोद्यमनैश्च मातरः प्रसादयन्ति तद्वत् ॥४॥ अत्र श्लिष्टोपमालङ्कारः ॥४॥
आराधनेन पुरुषार्थेन च प्रसादितः परमेश्वरः पावित्र्यादिसम्पादनद्वारेणानन्दप्रदानेन चाराधकस्य हिताय जायते ॥४॥