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अ꣣यं꣢ पू꣣षा꣢ र꣣यि꣢꣫र्भगः꣣ सो꣡मः꣢ पुना꣣नो꣢ अ꣢र्षति । प꣡ति꣣र्वि꣡श्व꣢स्य꣣ भू꣡म꣢नो꣣꣬ व्य꣢꣯ख्य꣣द्रो꣡द꣢सी उ꣣भे꣢ ॥५४६॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

अयं पूषा रयिर्भगः सोमः पुनानो अर्षति । पतिर्विश्वस्य भूमनो व्यख्यद्रोदसी उभे ॥५४६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣣य꣢म् । पू꣣षा꣢ । र꣣यिः꣢ । भ꣡गः꣢꣯ । सो꣡मः꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣र्षति । प꣡तिः꣢꣯ । वि꣡श्व꣢꣯स्य । भू꣡म꣢꣯नः । वि । अ꣣ख्यत् । रो꣡द꣢꣯सी꣣इ꣡ति꣢ । उ꣣भे꣡इति꣢ ॥५४६॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 546 | (कौथोम) 6 » 2 » 1 » 2 | (रानायाणीय) 5 » 8 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में सोम परमात्मा की महिमा वर्णित की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(पूषा) पुष्टिकर्ता, (रयिः) ऐश्वर्यवान् और ऐश्वर्यप्रदाता, (भगः) भजनीय (अयं सोमः) यह रसागार प्रेरक परमेश्वर (पुनानः) रची हुई सब वस्तुओं को पवित्र करता हुआ (अर्षति) सक्रिय हो रहा है। (विश्वस्य) सकल (भूमनः) ब्रह्माण्ड का (पतिः) स्वामी वा रक्षक यह परमेश्वर (उभे) दोनों (रोदसी) भूगोल व खगोल को (व्यख्यत्) तेज से प्रकाशित करता है। इस वर्णन से परमेश्वर का जगत् का शिल्पी होना व्यञ्जित हो रहा है ॥२॥

भावार्थभाषाः -

सब जगत् का रचयिता, धारक, प्रकाशक, ऐश्वर्यशाली तथा ऐश्वर्य का दाता जगदीश्वर सबके द्वारा भजन करने योग्य है ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ सोमस्य परमात्मनो महिमानमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(पूषा) पोषकः (रयिः) ऐश्वर्यवान् ऐश्वर्यप्रदाता वा। अत्र रयिशब्दस्य तद्वति तत्प्रदातरि वा लक्षणा, भूयस्त्वं च व्यज्यते। (भगः) भजनीयः (अयं सोमः) एष रसागारः प्रेरकः परमेश्वरः (पुनानः) रचितानि सर्वाणि वस्तूनि पवित्रीकुर्वन् (अर्षति) गच्छति, सक्रियो भवति। (विश्वस्य) सर्वस्य (भूमनः) ब्रह्माण्डस्य (पतिः) स्वामी रक्षको वा एष परमेश्वरः (उभे) द्वे अपि (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ। (व्यख्यत्) तेजसा प्रकाशयति। एतेन परमेश्वरस्य जगच्छिल्पित्वं व्यज्यते ॥२॥

भावार्थभाषाः -

सर्वस्य जगतो रचयिता धारकः, प्रकाशकः, परमैश्वर्यवान् परमैश्वर्यप्रदाता च जगदीश्वरः सर्वैर्भजनीयः ॥२॥

टिप्पणी: १. ९।१०१।७, साम० ८१८।