अ꣣या꣡ सो꣢म सु꣣कृत्य꣡या꣢ म꣣हा꣢꣫न्त्सन्न꣣꣬भ्य꣢꣯वर्धथाः । म꣣न्दान꣡ इद्वृ꣢꣯षायसे ॥५०७॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)अया सोम सुकृत्यया महान्त्सन्नभ्यवर्धथाः । मन्दान इद्वृषायसे ॥५०७॥
अ꣣या꣢ । सो꣣म । सुकृत्य꣡या꣢ । सु꣣ । कृत्य꣡या꣢ । म꣣हा꣢न् । सन् । अ꣣भि꣢ । अ꣣वर्धथाः । मन्दानः꣢ । इत् । वृ꣣षायसे ॥५०७॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में सोम परमात्मा क्या करता है, यह वर्णित है।
हे (सोम) रसागार परमेश्वर ! (महान् सन्) महान् होते हुए आप (अया) इस (सुकृत्यया) स्तुति-गान रूप शुभ क्रिया से (अभ्यवर्द्धथाः) हृदय में वृद्धि को प्राप्त हो गये हो। आप (मन्दानः) आनन्द प्रदान करते हुए (इत्) सचमुच (वृषायसे) वृष्टिकर्ता बादल के समान आचरण करते हो, अर्थात् जैसे बादल जल बरसाता हुआ सब प्राणियों को और ओषधि-वनस्पति आदियों को तृप्त करता है, वैसे ही आप आनन्द की वर्षा करके हमें तृप्त करते हो ॥११॥
जैसे-जैसे स्तोता स्तुतिगान से परमेश्वर की आराधना करता है, वैसे-वैसे परमेश्वर आनन्द की वृष्टि से उसे प्रसन्न करता है ॥११॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ सोमः परमात्मा किं करोतीत्याह।
हे (सोम) रसागार परमेश्वर ! (महान् सन्) पूज्यो भवन् त्वम् (अया) अनया (सुकृत्यया) स्तुतिगानरूपया शोभनक्रियया (अभ्यवर्धथाः) हृदयेऽभिवृद्धिं गतोऽसि। त्वम् (मन्दानः) आनन्दं प्रयच्छन् (इत्) सत्यमेव (वृषायसे) वृषो वर्षको मेघः इवाचरसि, यथा मेघो जलं वर्षन् सर्वान् प्राणिनः ओषधिवनस्पत्यादींश्च तर्पयति तथैव त्वमानन्दवर्षणेनास्मान् तर्पयसीत्यर्थः ॥११॥
यथा यथा स्तोता स्तुतिगानेन परमेश्वरमाराध्नोति तथा तथा परमेश्वर आनन्दवर्षणेन तं प्रफुल्लयति ॥११॥