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अ꣣या꣡ प꣢वस्व꣣ धा꣡र꣢या꣣ य꣢या꣣ सू꣢र्य꣣म꣡रो꣢चयः । हि꣣न्वानो꣡ मानु꣢꣯षीर꣣पः꣢ ॥४९३॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

अया पवस्व धारया यया सूर्यमरोचयः । हिन्वानो मानुषीरपः ॥४९३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣣या꣢ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । य꣡या꣢꣯ । सू꣡र्य꣢꣯म् । अ꣡रो꣢चयः । हि꣣न्वानः꣢ । मा꣡नु꣢꣯षीः । अ꣣पः꣢ ॥४९३॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 493 | (कौथोम) 6 » 1 » 1 » 7 | (रानायाणीय) 5 » 3 » 7


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में सोम परमात्मा से तेज की धारा माँगी गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे तेज-रूप रस के भण्डार परमेश्वर ! आप (अया) इस (धारया) तेज की धारा के साथ (पवस्व) हमें प्राप्त हो। (यया) जिस तेज की धारा से, आपने (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयः) चमकाया है। आप (मानुषीः अपः) सब मानव प्रजाओं को (हिन्वानः) तेज से तृप्त करो ॥७॥

भावार्थभाषाः -

जो परमेश्वर तेज से सूर्य, अग्नि, बिजली आदियों को चमकाता है, उसके दिये हुए तेज से सब मनुष्य तेजस्वी होवें ॥७॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ सोमं परमात्मनं तेजोधारां प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे तेजोरसस्य अगार सोम परमेश्वर ! त्वम् (अया) अनया। अया एना इत्युपदेशस्य इति निरुक्तम्। ३।२१। (धारया) तेजोधारया (पवस्व) अस्मान् प्रति समागच्छ। पवते गतिकर्मा। निघं० २।१४। (यया) तेजोधारया, त्वम् (सूर्यम्) आदित्यम् (अरोचयः) रोचितवानसि। त्वम् (मानुषीः अपः) मनुष्यसम्बन्धिनीः प्रजाः२ (हिन्वानः) तेजसा प्रीणयन् भवेति शेषः। हिवि प्रीणनार्थः भ्वादिः ॥७॥

भावार्थभाषाः -

यः परमेश्वरस्तेजसा सूर्यवह्निविद्युदादीन् प्रदीपयति, तत्प्रत्तेन तेजसा सर्वे जनास्तेजस्विनो भवन्तु ॥७॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।६१।२२। २. ‘आपः जलानीव प्रजाः’ इति ऋ० ५।३४।९ भाष्ये द०।