अ꣣या꣡ वाजं꣢꣯ दे꣣व꣡हि꣢तꣳ सनेम꣣ म꣡दे꣢म श꣣त꣡हि꣢माः सु꣣वी꣡राः꣢ ॥४५४॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)अया वाजं देवहितꣳ सनेम मदेम शतहिमाः सुवीराः ॥४५४॥
अ꣣या꣢ । वा꣡ज꣢꣯म् । दे꣣व꣡हि꣢तम् । दे꣣व꣢ । हि꣣तम् । सनेम । म꣡दे꣢꣯म । श꣣त꣡हि꣢माः । श꣣त꣢ । हि꣣माः । सुवी꣡राः꣢ । सु꣣ । वी꣡राः꣢꣯ ॥४५४॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र का देवता इन्द्र है। उससे धनादि की आकांक्षा की गयी है।
हे इन्द्र परमात्मन्, जीवात्मन् अथवा राजन् ! हम (अया) इस देह से अथवा इस बुद्धि से (देवहितम्) विद्वानों वा इन्द्रियों के लिए हितकर (वाजम्) धन, बल और विज्ञान को (सनेम) प्राप्त करें, और (सुवीराः) उत्तम वीर पुत्रों सहित, हम (शतहिमाः) सौ वर्ष (मदेम) आनन्द लाभ करते रहें ॥८॥
वही धन, बल और विज्ञान श्रेष्ठ होता है, जो परोपकार में प्रयुक्त हो। उसे पाकर कम से कम सौ वर्ष जीनेवाले सब स्त्री-पुरुष होवें ॥८॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथेन्द्रो देवता। तस्माद् धनादिकमाशंसते।
हे इन्द्र परमात्मन् मदीय अन्तरात्मन् राजन् वा ! वयम् (अया२) अनया तन्वा अनया धिया३ वा (देवहितम्४) देवेभ्यो विद्वद्भ्य इन्द्रियेभ्यो वा हितं हितकरम् (वाजम्) धनं बलं विज्ञानं वा (सनेम) लभेमहि, किञ्च (सुवीराः) शोभनवीरोपेताः वयम् (शतहिमाः) शतवर्षाणि (मदेम) हृष्येम ॥८॥५
तदेव धनं बलं विज्ञानं वा श्रेष्ठं यत् परोपकारे प्रयुज्यते। तत् प्राप्य न्यूनान्न्यूनं शतवर्षजीविनः सर्वे स्त्रीपुरुषा भवेयुः ॥८॥