वि꣢ स्रु꣣त꣢यो꣣ य꣡था꣢ प꣣थ꣢꣫ इन्द्र꣣ त्व꣡द्य꣢न्तु रा꣣त꣡यः꣢ ॥४५३॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)वि स्रुतयो यथा पथ इन्द्र त्वद्यन्तु रातयः ॥४५३॥
वि꣢ । स्रु꣣त꣡यः꣢ । य꣡था꣢꣯ । प꣣थः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯ । त्वत् । य꣣न्तु । रात꣡यः꣢ ॥४५३॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में सब विद्वानों तथा इन्द्र के दानों की प्रार्थना है।
हे सब विद्वानो तथा हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वर, जीवात्मन् वा राजन् ! (त्वत्) तेरे पास से (रातयः) दान (वि यन्तु) विविध दिशाओं में जाएँ, (यथा) जैसे (पथः) राजमार्ग से (स्रुतयः) छोटे-छोटे मार्ग विविध दिशाओं में जाते हैं ॥७॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥७॥
परमेश्वर, जीवात्मा और राजा से धन, धर्म, सत्य, अहिंसा, न्याय, विद्या, दया, उदारता, स्वास्थ्य, दीर्घायुष्य आदि दानों को प्राप्त करके हम श्रेष्ठ नागरिक बनें ॥७॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ विश्वेषां देवानाम् इन्द्रस्य च दानानि प्रार्थ्यन्ते।
हे विश्वेदेवाः सर्वे विद्वांसः, अथ च हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर, जीवात्मन्, राजन् वा ! (त्वत्) तव सकाशात् (रातयः) दानानि (वि यन्तु) विविधं गच्छन्तु, (यथा) येन प्रकारेण (पथः२) राजमार्गात् (स्रुतयः) लघुमार्गाः, वियन्ति विभिन्नदिशासु गच्छन्ति तद्वत् ॥७॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥७॥
परमेश्वराज्जीवात्मनो नृपतेश्च धनधर्मसत्याहिंसान्यायविद्यादया- दाक्षिण्यस्वास्थ्यदीर्घायुष्यादीनि दानानि प्राप्य वयं श्रेष्ठा नागरिका भवेम ॥७॥