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वि꣡श्व꣢स्य꣣ प्र꣡ स्तो꣢भ पु꣣रो꣢ वा꣣ स꣡न्यदि꣢꣯ वे꣣ह꣢ नू꣣न꣢म् ॥४५०

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स्वर-रहित-मन्त्र

विश्वस्य प्र स्तोभ पुरो वा सन्यदि वेह नूनम् ॥४५०

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि꣡श्व꣢꣯स्य । प्र । स्तो꣢भ । पुरः꣢ । वा꣣ । स꣢न् । य꣡दि꣢꣯ । वा꣣ । इह꣢ । नू꣣न꣢म् ॥४५०॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 450 | (कौथोम) 5 » 2 » 2 » 4 | (रानायाणीय) 4 » 11 » 4


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र का देवता इन्द्र है। उससे प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्द्र) सबको सहायता प्रदान करनेवाले जगदीश्वर ! आप (विश्वस्य) सबको (प्र स्तोभ) भली-भाँति अवलम्ब दो, (पुरो वा सन्) चाहे आप प्रत्यक्ष सामने विद्यमान होवो, (यदि वा) अथवा चाहे (नूनम्) परोक्ष विद्यमान होवो ॥४॥

भावार्थभाषाः -

प्रत्यक्ष हो चाहे परोक्ष, सदा ही परमेश्वर हमें अवलम्ब देता है। यद्यपि वह सदा सबके समक्ष ही है, तो भी जैसे दिनौंधी रोग से ग्रस्त लोग सांसारिक पदार्थों को नहीं देख पाते हैं, वैसे ही अज्ञान से ग्रस्त हम जब उसे नहीं देख पाते, तब वह परोक्ष कहलाता है ॥४॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथेन्द्रो देवता। स प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (इन्द्र) सर्वेषां साहाय्यप्रद जगदीश्वर ! त्वम् (विश्वस्य) सर्वस्य, सर्वानपीत्यर्थः। द्वितीयार्थे षष्ठी। (प्र स्तोभ) प्रकर्षेण स्तभान, अवलम्बं प्रयच्छ। ष्टुभु स्तम्भे, भ्वादिः। ‘तिङ्ङतिङः’ अ० ८।१।२८ इति निघातः। (पुरो वा सन्) प्रत्यक्षं वा विद्यमानः, (यदि वा) अथवा (इह) अस्मिन् जीवने (नूनम्) अप्रत्यक्षं विद्यमानः भवेः। नूनम् इति उक्ताद् विपरीतं गमयति, यथा ‘न नूनमस्ति नो श्वः’ ऋ० १।१७०।१ इत्यत्र ‘श्वः’ इत्यस्माद् विपरीतम् ‘अद्य’ इत्यर्थम् ॥४॥

भावार्थभाषाः -

प्रत्यक्षं वा परोक्षं वा सदैव परमेश्वरोऽस्मानवलम्बते। यद्यपि स सर्वदा सर्वेषां समक्षमेव विद्यते, तथापि दिवान्धत्वग्रस्ता जनाः सांसारिकपदार्थानिव दुर्विवेकग्रस्ता वयं तं यदा न निभालयामस्तदा स परोक्ष उच्यते ॥४॥