वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

भ꣢गो꣣ न꣢ चि꣣त्रो꣢ अ꣣ग्नि꣢र्म꣣हो꣢नां꣣ द꣡धा꣢ति꣣ र꣡त्न꣢म् ॥४४९

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

भगो न चित्रो अग्निर्महोनां दधाति रत्नम् ॥४४९

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भ꣣गः꣢꣯ । न । चि꣣त्रः꣢ । अ꣣ग्निः꣢ । म꣣हो꣡ना꣢म् । द꣡धा꣢꣯ति । र꣡त्न꣢꣯म् ॥४४९॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 449 | (कौथोम) 5 » 2 » 2 » 3 | (रानायाणीय) 4 » 11 » 3


बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में अग्नि नाम से परमेश्वर और राजा की महिमा वर्णित है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(भगः न) सेवनीय सूर्य के समान (चित्रः) अद्भुत गुण, कर्म, स्वभाववाला (अग्निः) अग्रनेता परमेश्वर वा राजा (महोनाम्) तेजस्वी वा महत्वाकांक्षी जनों के (रत्नम्) रमणीय ऐश्वर्य को (दधाति) परिपुष्ट करता है ॥३॥ इस मन्त्र में उपमालङ्कार है ॥३॥

भावार्थभाषाः -

जो स्वयं महत्वाकांक्षी वा तेजस्वी नहीं हैं, उनकी परमात्मा वा राजा भी भला क्या सहायता करेंगे ॥३॥

बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथाग्निनाम्ना परमेश्वरस्य नृपतेश्च महिमानमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(भगः न) सेवनीयः सूर्यः इव (चित्रः) अद्भुतगुणकर्मस्वभावः (अग्निः) अग्रणीः परमेश्वरो राजा वा (महोनाम्) तेजस्विनां महत्त्वाकाङ्क्षिणां वा जनानाम् (रत्नम्) रमणीयम् ऐश्वर्यम् (दधाति) पुष्णाति ॥३॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥३॥

भावार्थभाषाः -

ये स्वयं महत्त्वाकाङ्क्षिणस्तेजस्विनो वा न सन्ति तेषां परमात्मा नृपतिश्चापि किं साहाय्यं करिष्यतः ॥३॥