स꣢दा꣣ गा꣢वः꣣ शु꣡च꣢यो वि꣣श्व꣡धा꣢यसः꣣ स꣡दा꣢ दे꣣वा꣡ अ꣢रे꣣प꣡सः꣢ ॥४४२
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)सदा गावः शुचयो विश्वधायसः सदा देवा अरेपसः ॥४४२
स꣡दा꣢꣯ । गा꣡वः꣢꣯ । शु꣡च꣢꣯यः । वि꣣श्व꣡धा꣢यसः । वि꣣श्व꣢ । धा꣣यसः । स꣡दा꣢꣯ । दे꣣वाः꣢ । अ꣣रेप꣡सः꣢ । अ꣣ । रेप꣡सः꣢ ॥४४२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में ‘विश्वेदेवाः’ देवता हैं। उनकी पवित्रता का वर्णन किया गया है।
(सदा) हमेशा (विश्वधायसः) सबको अपना रस पिलानेवाली (गावः) धेनुएँ, सूर्यकिरणें और वेदवाणियाँ (शुचयः) पवित्र और पवित्रताकारक होती हैं। (सदा) हमेशा (देवाः) दान करने, प्रकाशित होने, प्रकाशित करने आदि गुणवाले सदाचारी विद्वान् लोग (अरेपसः) निर्दोष एवं पवित्र होते हैं ॥६॥
सब स्त्री-पुरुषों को गौओं, सूर्यकिरणों, वेदवाणियों और विद्वानों के समान सदा निर्दोष और पवित्र रहना चाहिए ॥६॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ विश्वेदेवा देवताः। तेषां पवित्रत्वं वर्णयति।
(सदा) सर्वदा (विश्वधायसः) विश्वं धापयन्ति रसं पाययन्ति यास्ताः (गावः१) धेनवः, सूर्यदीधितयः, वेदवाचो वा (शुचयः) पवित्राः पाविकाश्च भवन्ति। (सदा) सर्वदा (देवाः) दानदीपनद्योतनादिगुणवन्तः सदाचारिणो विद्वांसः (अरेपसः) निर्दोषाः पवित्राश्च भवन्ति ॥६॥
सर्वैः स्त्रीपुरुषैर्धेनुवत् सूर्यरश्मिवद् वेदवाग्वद् विद्वद्वच्च सदा निर्दोषैः पवित्रैश्च भाव्यम् ॥६॥