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क꣢ ईं꣣꣬ व्य꣢꣯क्ता꣣ न꣢रः꣣ स꣡नी꣢डा रु꣣द्र꣢स्य꣣ म꣢र्या꣣ अ꣢था꣣ स्व꣡श्वाः꣢ ॥४३३॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

क ईं व्यक्ता नरः सनीडा रुद्रस्य मर्या अथा स्वश्वाः ॥४३३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

के꣢ । ई꣣म् । व्य꣡क्ता꣢ । वि । अ꣣क्ताः । न꣡रः꣢꣯ । स꣡नी꣢꣯डाः । स । नी꣣डाः । रुद्र꣡स्य꣢ । म꣡र्याः꣢꣯ । अ꣡थ꣢꣯ । स्वश्वाः꣢꣯ । सु꣣ । अ꣡श्वाः꣢꣯ ॥४३३॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 433 | (कौथोम) 5 » 1 » 5 » 7 | (रानायाणीय) 4 » 9 » 7


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र के ‘मरुतः’ देवता हैं। प्राणों और योद्धाओं के विषय में प्रश्न उठाते हुए कहा गया है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(के ईम्) कौन ये (व्यक्ताः) प्रकाशमान, (नरः) नेता, (सनीडाः) समान आश्रयवाले, (रुद्रस्य मर्याः) रूद्र के पुत्र कहे जानेवाले, (अथ) और (स्वश्वाः) उत्तम घोड़ोंवाले हैं? यह प्रश्न है। इसका उत्तर इस प्रकार है— प्रथम—प्राणों के पक्ष में। ये (व्यक्ताः) विशेष गतिवाले, (नरः) शरीर के नेता, (सनीडाः) शरीर-रूप समान गृह में निवास करनेवाले, (रुद्रस्य मर्याः) रूद्र नामक मुख्य प्राण के सहचर, (स्वश्वाः) इन्द्रियरूप उत्तम घोड़ोंवाले, (मरुतः) प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान हैं ॥ द्वितीय—सैनिकों के पक्ष में। ये (व्यक्ताः) कन्धों पर बन्दूकें, पैरों में पादत्राण, छातियों पर सोने के तमगे, भुजाओं में विद्युत्-यन्त्र, शिरों पर शिरस्त्राण इन परिचायक चिह्नों से व्यक्त होते हुए, (सनीडाः) समान राष्ट्ररूप गृह में निवास करनेवाले, (रुद्रस्य मर्याः) शत्रुओं को रुलानेवाले सेनापति के मनुष्य (स्वश्वाः) उत्तम घोड़ों पर सवार अथवा उत्तम अग्नि, विद्युत् आदि को युद्ध-रथ में प्रयुक्त करनेवाले (मरुतः) राष्ट्र के वीर सैनिक हैं ॥७॥ इस मन्त्र में प्रश्न में ही उत्तर समाविष्ट होने से गूढोत्तर नामक प्रहेलिकालङ्कार है ॥७॥

भावार्थभाषाः -

जैसे शरीर-रूप गृह में व्यवस्थापूर्वक अपना-अपना स्थान बाँटकर विभिन्न अङ्गों में आश्रय लेनेवाले प्राण शरीर की रक्षा करते हैं, वैसे ही राष्ट्र में निवास करनेवाले वीर सैनिक राष्ट्र की रक्षा करते हैं, इस कारण शरीर में प्राणों का और राष्ट्र में सैनिकों का उत्तम खाद्य, पेय आदि से सत्कार करना चाहिए ॥७॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ मरुतो देवताः। प्राणानां योद्धॄणां च विषये प्रश्नपूर्वकमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(के ईम्) के इमे (व्यक्ताः) प्रकाशमानाः (नरः) नेतारः (सनीडाः) समानाश्रयाः (रुद्रस्य मर्याः) रुद्रस्य पुत्रत्वेनोच्यमानाः (अथ) अपि च (स्वश्वाः) शोभनाश्वाः सन्तीति प्रश्नः। अथोत्तरम्, (प्राणपक्षे) इमे (व्यक्ताः) विशेषेण गतिमन्तः। वि पूर्वः अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु। (नरः) शरीरस्य नेतारः, (सनीडाः) देहरूपसमानगृहवासिनः, (रुद्रस्य मर्याः) रुद्रनाम्नो मुख्यप्राणस्य सहचराः (स्वश्वाः) इन्द्रियरूपशोभनाश्वाः, मरुतः प्राणापानव्यानोदानसमानाः सन्तीति ॥अथ सैनिकपक्षे—इमे (व्यक्ताः) परिचायकचिह्नैः२ अंसेषु ऋष्टिभिः, पत्सु खादिभिः, वक्षःसु रुक्मैः, गभस्त्योः विद्युद्भिः, शीर्षसु शिप्रैः व्यक्तिं भजमानाः, (सनीडाः) समाने राष्ट्ररूपे नीडे निवसन्तः (रुद्रस्य मर्याः) शत्रुरोदकस्य सेनापतेः मनुष्याः (स्वश्वाः) शोभनेषु तुरङ्गमेष्वारूढाः, यद्वा शोभनानश्वान् अग्निविद्युदादीन् युद्धरथे योक्तारः, मरुतः राष्ट्रस्य वीराः सैनिकाः सन्तीति ॥७॥ अत्र प्रश्न एव उत्तरस्य समावेशाद् गूढोत्तररूपः प्रहेलिकाङ्कारः ॥७॥

भावार्थभाषाः -

यथा देहरूपे गृहे व्यवस्थापूर्वकं विभज्य विभिन्नान्यङ्गान्याश्रयन्तः प्राणाः देहं रक्षन्ति, तथैव राष्ट्रे निवसन्तो वीराः सैनिकाः राष्ट्रं रक्षन्तीति हेतोर्देहे प्राणा राष्ट्रे च सैनिका उत्तमखाद्यपेयादिभिः सत्करणीयाः ॥७॥

टिप्पणी: १. ऋ० ७।५६।१। अंसेषु व ऋष्टयः पत्सु खादयो वक्षःसु रुक्मा मरुतो रथे शुभः। अग्निभ्राजसो विद्युतो गभस्त्योः शिप्राः शीर्षसु वितता हिरण्ययीः ॥ ऋ० ५।५४।११ इत्यत्र वर्णितैः परिचायकचिह्नैरित्यर्थः।