प꣢रि꣣ प्र꣢ ध꣣न्वे꣡न्द्रा꣢य सोम स्वा꣣दु꣢र्मि꣣त्रा꣡य꣢ पू꣣ष्णे꣡ भगा꣢꣯य ॥४२७॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥४२७॥
प꣡रि꣢꣯ । प्र । ध꣣न्व । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣣म । स्वादुः꣢ । मि꣣त्रा꣡य꣢ । मि꣣ । त्रा꣡य꣢꣯ । पू꣣ष्णे꣢ । भ꣡गा꣢꣯य ॥४२७॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आदि की छः ऋचाओं का पवमान सोम देवता है। इस मन्त्र में सोम परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।
हे (सोम) रसागार एवं शान्तिमय जगदीश्वर ! (स्वादुः) मधुर आप, मेरे (इन्द्राय) आत्मा के लिए, (मित्राय) मित्रभूत मन के लिए, (पूष्णे) पोषक प्राण के लिए और (भगाय) सेवनीय बुद्धितत्त्व के लिए (परि प्र धन्व) सब ओर से माधुर्य और शान्ति को क्षरित करो ॥१॥
रसागार और शान्त परमेश्वर ही हमें रसमय और शान्तिप्रिय कर सकता है ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथाद्यानां षण्णां पवमानः सोमो देवता। सोमः परमात्मा प्रार्थ्यते।
हे (सोम) रसागार, शान्तिमय जगदीश्वर ! (स्वादुः) मधुरः त्वम्, मदीयाय (इन्द्राय) आत्मने, (मित्राय) मित्रभूताय मनसे, (पूष्णे) पोषकाय प्राणाय, (भगाय) सेवनीयाय बुद्धितत्त्वाय च (परि प्र धन्व) सर्वतः प्रक्षर, माधुर्यं शान्तिं च प्रस्रावयेत्यर्थः। धन्वतिः गतिकर्मा। निघं० २।१४ ॥१॥
रसागारः शान्तश्च परमेश्वर एवास्मान् रसमयान् शान्तिप्रियांश्च कर्तुमर्हति ॥१॥