वे꣢त्था꣣ हि꣡ निरृ꣢꣯तीनां꣣ व꣡ज्र꣢हस्त परि꣣वृ꣡ज꣢म् । अ꣡ह꣢रहः शु꣣न्ध्युः꣡ प꣢रि꣣प꣡दा꣢मिव ॥३९६॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)वेत्था हि निरृतीनां वज्रहस्त परिवृजम् । अहरहः शुन्ध्युः परिपदामिव ॥३९६॥
वे꣡त्थ꣢꣯ । हि꣡ । नि꣡र्ऋ꣢꣯तीनाम् । निः । ऋ꣣तीनाम् । व꣡ज्र꣢꣯हस्त । व꣡ज्र꣢꣯ । ह꣣स्त । परिवृ꣡ज꣢म् । प꣣रि । वृ꣡ज꣢꣯म् । अ꣡ह꣢꣯रहः । अ꣡हः꣢꣯ । अ꣣हः । शुन्ध्युः꣢ । प꣣रिप꣡दा꣢म् । प꣣रि । प꣡दा꣢꣯म् । इ꣣व ॥३९६॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में सूर्य के दृष्टान्त से इन्द्र की महिमा का वर्णन है।
हे (वज्रहस्त) शस्त्रास्त्रपाणि वीर राजन् या सेनापति, अथवा शस्त्रास्त्रधारी वीरपुरुष के समान पाप आदि विघ्नों का दलन करने में समर्थ पराक्रमशाली परमात्मन् ! (शुन्ध्युः) राष्ट्र के अथवा मन के शोधक आप (निर्ऋतीनाम्) पापों, कुनीतियों, कष्टों, अकालमृत्युओं अथवा शत्रुसेनाओं के (अहरहः) प्रतिदिन (परिवृजम्) परिहार को (वेत्थ हि) निश्चय ही जानते हो, (शुन्ध्युः) शोधक सूर्य (अहरहः) प्रतिदिन (परिपदाम् इव) जैसे चारों ओर व्याप्त अन्धकारों या रोगों का परिहार करना जानता है ॥६॥ इस मन्त्र में श्लिष्टोपमालङ्कार है ॥६॥
जैसे शोधक सूर्य तमोजाल, रोग, मालिन्य आदियों को दूर करता है, वैसे ही परमेश्वर संसार के पाप, कुनीति, कष्ट आदि का विनाश करता है। उसी प्रकार राजा और सेनापति को भी चाहिए कि राष्ट्र से पाप, दुराचार, अकालमृत्यु, शत्रुसेना आदियों का प्रयत्न से निवारण करे ॥६॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ सूर्यदृष्टान्तेनेन्द्रस्य महिमानमाह।
हे (वज्रहस्त) शस्त्रास्त्रपाणे इन्द्र वीर राजन्, सेनापते वा, यद्वा शस्त्रास्त्रपाणिर्वीरपुरुष इव पापादिविघ्नदलनसामर्थ्ययुक्त पराक्रमशालिन् परमात्मन् ! (शुन्ध्युः) राष्ट्रस्य मनसो वा शोधकः त्वम् (निर्ऋतीनाम्) पाप्मनां, कुनीतीनां२, कृच्छ्रापत्तीनाम्, अकालमृत्यूनां, शत्रुसेनानां वा। निर्ऋतिः निरमणात्, ऋच्छतेः कृच्छ्रापत्तिरितरा इति यास्कः। निरु० २।८। पाप्मा वै निर्ऋतिः। श० ७।२।१।१, घोरा वै निर्ऋतिः। श० ७।२।१।१०। (अहरहः) दिने दिने (परिवृजम्) परिवर्जनम्, परिहारम् (वेत्थ हि) जानासि खलु, (शुन्ध्युः) शोधकः आदित्यः। शुन्ध्युरादित्यो भवति, शोधनात्। निरु० ४।१६। (अहरहः) दिने दिने (परिपदाम्३ इव) यथा परितः पद्यमानानाम् अन्धकाराणां रोगाणां वा परिहारं वेत्ति तद्वत् ॥६॥ अत्र श्लिष्टोपमालङ्कारः ॥६॥
यथा शोधकः सूर्यस्तमोजालरोगमालिन्यादीनि परिहरति तथा परमेश्वरः संसारात् पापकुनीतिकृच्छ्रापत्त्यादीन्यपहन्ति। तथैव नृपेण सेनापतिना च राष्ट्रात् पापकदाचारकृच्छ्रापत्त्यकालमरणशत्रुसेनादीनि प्रयत्नेन निवारणीयानि ॥६॥