य꣢꣫ एक꣣ इ꣢द्वि꣣द꣡य꣢ते꣣ व꣢सु꣣ म꣡र्ता꣢य दा꣣शु꣡षे꣢ । ई꣡शा꣢नो꣣ अ꣡प्र꣢तिष्कुत꣣ इ꣡न्द्रो꣢ अ꣣ङ्ग꣢ ॥३८९॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)य एक इद्विदयते वसु मर्ताय दाशुषे । ईशानो अप्रतिष्कुत इन्द्रो अङ्ग ॥३८९॥
यः꣢ । ए꣡कः꣢꣯ । इत् । वि꣣द꣡य꣢ते । वि꣣ । द꣡य꣢꣯ते । व꣡सु꣢꣯ । म꣡र्ता꣢꣯य । दा꣣शु꣡षे꣢ । ई꣡शा꣢꣯नः । अ꣡प्र꣢꣯तिष्कुतः । अ । प्र꣣तिष्कुतः । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । अ꣣ङ्ग꣢ ॥३८९॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमेश्वर के धन-प्रदाता रूप का वर्णन है।
(यः) जो (एकः इत्) एक ही है, और जो (दाशुषे मर्त्याय) अपना धन दूसरों के हित के लिए जिसने दान कर दिया है, ऐसे मनुष्य को (वसु) धन (विदयते) विशेष रूप से प्रदान करता है, (अङ्ग) हे भाई ! वह (ईशानः) सकल ब्रह्माण्ड का अधीश्वर (अप्रतिष्कुतः) किसी से प्रतिकार न किया जा सकनेवाला अथवा कभी न लड़खड़ानेवाला (इन्द्रः) इन्द्र नामक परमेश्वर है ॥९॥
परमेश्वर एक ही है, उसके बराबर या उससे अधिक अन्य कोई नहीं है। धनदाता वह परोपकारार्थ धन का दान करनेवाले को अधिकाधिक धन प्रदान करता है ॥९॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमेश्वरस्य धनदत्वं वर्ण्यते।
(यः एकः इत्) एक य एव विद्यते, किञ्च, यः (दाशुषे मर्त्याय) स्वकीयं धनं परेषां हिताय दत्तवते मनुष्याय (वसु) धनम् (विदयते) विशेषेण ददाति। दय दानगतिरक्षणहिंसादानेषु भ्वादिः। (अङ्ग२) हे भद्र ! सः (ईशानः) सकलब्रह्माण्डस्याधीश्वरः (अप्रतिष्कुतः३) अप्रतिष्कृतः अप्रतिस्खलितो वा। अप्रतिष्कुतः अप्रतिष्कृतोऽप्रतिस्खलितो वा। निरु० ६।१६। (इन्द्रः) इन्द्रनामा परमेश्वरोऽस्ति ॥९॥४
परमेश्वर एक एव वर्तते, तत्समस्तदधिको वाऽन्यः कश्चन नास्त्येव। धनदः स परोपकाराय धनदात्रेऽधिकाधिकं धनं प्रयच्छति ॥९॥