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देवता: इन्द्रः ऋषि: प्रियमेध आङ्गिरसः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

य꣡स्य꣢ ते महि꣣ना꣢ म꣣हः꣡ परि꣢꣯ ज्मा꣣य꣡न्त꣢मी꣣य꣡तुः꣢ । ह꣢स्ता꣣ व꣡ज्र꣢ꣳ हिर꣣ण्य꣡य꣢म् ॥१७७३॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

यस्य ते महिना महः परि ज्मायन्तमीयतुः । हस्ता वज्रꣳ हिरण्ययम् ॥१७७३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य꣡स्य꣢꣯ । ते꣣ । महिना꣢ । म꣣हः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । ज्मा꣣य꣡न्त꣢म् । ई꣣य꣡तुः꣢ । ह꣡स्ता꣢꣯ । व꣡ज्र꣢꣯म् । हि꣣रण्य꣡य꣢म् ॥१७७३॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1773 | (कौथोम) 9 » 1 » 3 » 3 | (रानायाणीय) 20 » 1 » 3 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमेश्वर और जीवात्मा का महत्त्व वर्णित है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे इन्द्र ! हे परमेश्वर वा जीवात्मन् ! (महः) महान् (यस्य ते) जिस तेरी (महिना) महिमा से (हस्ता) मनुष्य के दोनों हाथ (ज्मायन्तम्) पृथिवी के समान आचरण करनेवाले अर्थात् विशाल, (हिरण्ययम्) ज्योतिर्मय (वज्रम्) व को (परि ईयतुः) ग्रहण करते हैं, वह तू (महित्वना आपप्राथ) महिमा से परिपूर्ण है। [यहाँ ‘महित्वना आपप्राथ’ यह वाक्यपूर्ति के लिए पूर्व मन्त्र से लिया गया है] ॥३॥

भावार्थभाषाः -

मनुष्य जो विविध शस्त्रास्त्रों का ग्रहण, उन्हें चलाना, शत्रु को जीतना आदि महान् कर्मों को करने में समर्थ होता है, वह महिमा परमेश्वर और जीवात्मा की ही है ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमेश्वरस्य जीवात्मनश्च महत्त्वमाचष्टे।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे इन्द्र ! हे परमेश जीवात्मन् वा ! (महः) महतः (यस्य ते) यस्य तव (महिना) महिम्ना (हस्ता) मनुष्यस्य हस्तौ (ज्मायन्तम्) मां पृथिवीमिवाचरन्तम् विशालमित्यर्थः, (हिण्ययम्) ज्योतिर्मयम् (वज्रम्) आयुधम् (परि ईयतुः) परिगृह्णीतः, स त्वं ‘महित्वना आ पप्राथ’ इति पूर्वेण सम्बन्धः ॥३॥

भावार्थभाषाः -

यन्मनुष्यो विविधायुधपरिग्रहणपरिचालनशत्रुविजयादीनि महान्ति कर्माणि कर्तुं समर्थो जायते स महिमा परमेश्वरस्य जीवात्मनश्चैव वर्तते ॥३॥