अ꣣भि꣢ प्रि꣣या꣢णि꣣ का꣢व्या꣣ वि꣢श्वा꣣ च꣡क्षा꣢णो अर्षति । ह꣡रि꣢स्तुञ्जा꣣न꣡ आयु꣢꣯धा ॥१७६२॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)अभि प्रियाणि काव्या विश्वा चक्षाणो अर्षति । हरिस्तुञ्जान आयुधा ॥१७६२॥
अ꣣भि꣢ । प्रि꣣या꣡णि꣢ । का꣡व्या꣢꣯ । वि꣡श्वा꣢꣯ । च꣡क्षा꣢꣯णः । अ꣣र्षति । ह꣡रिः꣢꣯ । तु꣣ञ्जानः꣢ । आ꣡यु꣢꣯धा ॥१७६२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमेश्वर क्या करता है, यह कहा गया है।
(हरिः) मनोहर तथा दोषों को हरनेवाला परमेश्वर (विश्वा) सब (प्रियाणि) प्रिय (काव्या) हितकर वचनों को (चक्षाणः) बोलता हुआ और (आयुधा) शस्त्रास्त्रों को, अर्थात् काम-क्रोध आदि शत्रुओं के पराजय के लिए शत्रु-दलन-सामर्थ्यों को (तुञ्जानः) देता हुआ (अभि अर्षति) हमारे प्रति आ रहा है, अन्तरात्मा में प्रकट हो रहा है ॥२॥
परमेश्वर हमारे लिए हितकारी सन्देशों को प्रेरित करता है और शत्रुओं को हराने के लिए बल देता है ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमेश्वरः किं करोतीत्युच्यते।
(हरिः) मनोहरः दोषहर्ता च परमेश्वरः (विश्वा) विश्वानि (प्रियाणि) प्रीतिकराणि (काव्या) हितवचनानि (चक्षाणः) ब्रुवाणः। [चक्षिङ् व्यक्तायां वाचि, अदादिः।] (आयुधा) आयुधानि, कामक्रोधादिशत्रूणां पराजयार्थं रिपुदलनसामर्थ्यानि (तुञ्जानः) प्रयच्छन् (अभि अर्षति) अस्मान् प्रत्यागच्छति, अन्तरात्मं प्रकटी भवति[तुञ्जतिर्दानकर्मा। निघं० ३।२०] ॥२॥
परमेश्वरोऽस्मभ्यं हितावहान् सन्देशान् प्रेरयति, शत्रूणां पराजयाय बलं च प्रयच्छति ॥२॥