क꣡या꣢ नश्चि꣣त्र꣡ आ भु꣢꣯वदू꣣ती꣢ स꣣दा꣡वृ꣢धः꣣ स꣡खा꣢ । क꣢या꣣ श꣡चि꣢ष्ठया वृ꣣ता꣢ ॥१६९॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा । कया शचिष्ठया वृता ॥१६९॥
क꣡या꣢꣯ । नः꣣ । चित्रः꣢ । आ । भु꣣वत् । ऊती꣢ । स꣣दा꣡वृ꣢धः । स꣣दा꣢ । वृ꣣धः । स꣣खा꣢꣯ । स । खा꣣ । क꣡या꣢꣯ । श꣡चि꣢꣯ष्ठया । वृ꣣ता꣢ ॥१६९॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में इन्द्र नामक परमेश्वर और राजा की कृपा का वर्णन किया गया है।
(चित्रः) अद्भुत गुण-कर्म-स्वभाववाला वह इन्द्रनामक परमेश्वर और राजा (कया) कैसी अद्भुत (ऊती) रक्षा के द्वारा, और (कया) कैसी अद्भुत (शचिष्ठया) अतिशय बुद्धिपूर्ण (वृता) विद्यमान क्रिया के द्वारा (नः) हमारा (सदावृधः) सदा बढ़ानेवाला (सखा) सखा (आ भुवत्) बना हुआ है ॥५॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥५॥
जैसे परमेश्वर अपनी विलक्षण रक्षा से और विलक्षण क्रियाशक्ति से सबकी रक्षा और उपकार करता है, वैसे ही राजा प्रजाजनों का रक्षण और उपकार करे ॥५॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथेन्द्राख्यस्य परमात्मनो नृपतेश्च कृपां वर्णयन्नाह।
(चित्रः) अद्भुतगुणकर्मस्वभावः स इन्द्रः परमेश्वरो राजा वा (कया) कया अद्भुतया (ऊतो) ऊत्या रक्षया। सुपां सुलुक्पूर्वसवर्ण०। अ० ७।१।३९ इति तृतीयैकवचनस्य पूर्वसवर्णदीर्घः। (कया) कया (च) अद्भुतया (शचिष्ठया२) अतिशयेन प्रज्ञावत्या, बुद्धिपूर्वयेत्यर्थः। शचीति प्रज्ञानामसु पठितम्। निघं० ३।९। तद्वती शचीमती। ततोऽतिशायने इष्ठनि विन्मतोर्लुक्। अ० ५।३।६५ इति मतुपो लुक्। (वृता३) वर्तमानया क्रियया। वर्तते या सा वृत्, तया। (नः) अस्माकम् (सदावृधः) सदा वर्धयिता (सखा) सुहृत् (आभुवत्) आ भवति। भुवदिति भूधातोर्लेटि रूपम् ॥५॥४ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः ॥५॥
यथा परमेश्वरः स्वकीयया विलक्षणरक्षया विलक्षणक्रियाशक्त्या च सर्वान् रक्षत्युपकरोति च, तथैव राजा प्रजाजनान् रक्षेदुपकुर्याच्च ॥५॥