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सु꣣म꣢न्मा꣣ व꣢स्वी꣣ र꣡न्ती꣢ सू꣣न꣡री꣢ ॥१६५४

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स्वर-रहित-मन्त्र

सुमन्मा वस्वी रन्ती सूनरी ॥१६५४

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु꣣म꣡न्मा꣢ । सु꣣ । म꣡न्मा꣢꣯ । व꣡स्वी꣢꣯ । र꣡न्ती꣢꣯ । सू꣣न꣡री꣢ । सु꣣ । न꣡री꣢꣯ ॥१६५४॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1654 | (कौथोम) 8 » 1 » 14 » 1 | (रानायाणीय) 17 » 4 » 3 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में परमात्मा की शक्ति वा वेदवाणी का वर्णन है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे इन्द्र जगदीश्वर ! आपकी शक्ति वा वेदवाणी (सुमन्मा) शुभ ज्ञान देनेवाली, (वस्वी) निवासप्रद, (रन्ती) रमणीय और (सूनरी)उत्तम नेतृत्व करनेवाली है ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा की शक्ति का ध्यान करने से और उसकी वेदवाणी का अध्ययन करने तथा श्रवण करने से मनुष्य ज्ञानवान्, अपने आत्मा में सद्गुणों का निवास करानेवाले, श्रेष्ठ मार्ग पर चलनेवाले और सुखी होते हैं ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादाविन्द्रस्य परमात्मनः शक्तिं वेदवाचं वा वर्णयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे इन्द्र जगदीश्वर ! त्वदीया शक्तिः वेदवाग् वा (सुमन्मा)शुभज्ञानप्रदायिनी, (वस्वी) निवासिका, (रन्ती) रमणीया, (सूनरी) सुष्ठु नेतृत्वकारिणी च वर्तते ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मशक्तिध्यानेन तदीयवेदवाचोऽध्ययनेन श्रवणेन च मनुष्या ज्ञानवन्तः प्राप्तसद्गुणनिवासाः सन्मार्गगन्तारः सुखिनश्च भवन्ति ॥१॥