त्वं꣡ न꣢श्चि꣣त्र꣢ ऊ꣣त्या꣢꣫ वसो꣣ रा꣡धा꣢ꣳसि चोदय । अ꣣स्य꣢ रा꣣य꣡स्त्वम꣢꣯ग्ने र꣣थी꣡र꣢सि वि꣣दा꣢ गा꣣धं꣢ तु꣣चे꣡ तु नः꣢꣯ ॥१६२३॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)त्वं नश्चित्र ऊत्या वसो राधाꣳसि चोदय । अस्य रायस्त्वमग्ने रथीरसि विदा गाधं तुचे तु नः ॥१६२३॥
त्व꣢म् । नः꣢ । चित्रः꣢ । ऊ꣣त्या꣢ । व꣡सो꣢꣯ । रा꣡धा꣢꣯ꣳसि । चो꣣दय । अस्य꣢ । रा꣣यः꣢ । त्वम् । अ꣣ग्ने । रथीः꣢ । अ꣣सि । विदाः꣢ । गा꣣ध꣢म् । तु꣣चे꣢ । तु । नः꣣ ॥१६२३॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ४१ क्रमाङ्क पर हो चुकी है। यहाँ परमेश्वर और आचार्य से प्रार्थना करते हैं।
हे (वसो) निवासक परमेश्वर वा आचार्य ! (चित्रः) अद्भुत गुणोंवाले (त्वम्) आप (ऊत्या) रक्षा के साथ (नः) हमारे लिए(राधांसि) विद्या-धन, सच्चरित्रता आदि के धन और आध्यात्मिक ऐश्वर्य (चोदय) प्रेरित करो। हे (अग्ने) विद्वान्, अग्रनायक, तेजस्वी परमेश्वर वा आचार्य ! (त्वम्) आप (अस्य) इस (रायः) विद्या, सदाचार आदि धन के (रथीः) स्वामी (असि) हो। इसलिए (नः) हमारी (तुचे) सन्तान के लिए (तु) शीघ्र ही(गाधम्) तलस्पर्शी पाण्डित्य (विदाः) प्राप्त कराओ ॥१॥
जैसे जगदीश्वर सबके आत्मा में ज्ञान, सद्गुण आदि प्रेरित करता है, वैसे ही विद्वान् गुरुजन गृहस्थों को भली-भाँति उपदेश करें और उनके पुत्र, पौत्र आदियों को गुरुकुल में सब विद्याएँ पढ़ाकर विद्वान् तथा चरित्रवान् बनायें ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४१ क्रमाङ्के व्याख्यातपूर्वा। अत्र परमेश्वर आचार्यश्च प्रार्थ्यते।
हे (वसो) निवासक परमेश्वर आचार्य वा ! (चित्रः) अद्भुतगुणः (त्वम् ऊत्या) रक्षया सार्धम् (नः) अस्मभ्यम्(राधांसि) विद्याधनानि सच्चारित्र्यादिधनानि अध्यात्मैश्वर्याणि च (चोदय) प्रेरय। हे (अग्ने) विद्वन् अग्रनायक तेजस्विन् परमेश्वर आचार्य वा ! (त्वम् अस्य) एतस्य (रायः) विद्यासदाचारादिधनस्य (रथीः) स्वामी (असि) विद्यसे। अतः(नः) अस्माकम् (तुचे) अपत्याय (तु) क्षिप्रम् (गाधम्) तलस्पर्शि पाण्डित्यम् (विदाः) लम्भय ॥१॥२
यथा जगदीश्वरः सर्वेषामात्मनि ज्ञानसद्गुणादिकं प्रेरयति तथैव विद्वांसो गुरुजना गृहस्थान्, सम्यगुपदिशन्तु, तेषां पुत्रपौत्रादींश्च गुरुकुले सर्वा विद्या अध्याप्य विदुषश्चरित्रवतश्च कुर्युः ॥१॥