उ꣡त्ते꣢ बृ꣣ह꣡न्तो꣢ अ꣣र्च꣡यः꣢ समिधा꣣न꣡स्य꣢ दीदिवः । अ꣡ग्ने꣢ शु꣣क्रा꣡स꣢ ईरते ॥१५४१॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)उत्ते बृहन्तो अर्चयः समिधानस्य दीदिवः । अग्ने शुक्रास ईरते ॥१५४१॥
उ꣢त् । ते꣣ । बृह꣡न्तः꣢ । अ꣣र्च꣡यः꣢ । स꣣मिधा꣡न꣢स्य । स꣣म् । इधान꣡स्य꣢ । दी꣣दिवः । अ꣡ग्ने꣢꣯ । शु꣣क्रा꣡सः꣢ । ई꣣रते ॥१५४१॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम मन्त्र में परमात्मा का तेज वर्णित करते हैं।
हे (दीदिवः) सत्य के प्रकाशक, (अग्ने) विज्ञानवान् जगन्नायक परमात्मन् ! (समिधानस्य) देदीप्यमान (ते) आपकी (बृहन्तः) महान्, (शुक्रासः) पवित्र (अर्चयः) दीप्तियाँ (उदीरते) उठ रही हैं ॥१॥
जब उपासक परमात्मा में तन्मय हो जाता है, तब भौतिक अग्नि की ज्वालाओं के समान उसका तेजस्वी रूप उसके सामने प्रकट हो जाता है ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्रादौ परमात्मनस्तेजो वर्णयति।
हे (दीदिवः२) सत्यप्रकाशक (अग्ने) विज्ञानवन् जगन्नेतः परमात्मन् ! (समिधानस्य) सम्यग् दीप्यमानस्य (ते) तव (बृहन्तः) महान्तः (शुक्रासः) पवित्राः (अर्चयः) प्रभाः (उदीरते) उद्गच्छन्ति ॥१॥
यदोपासकः परमात्मनि तन्मयो जायते तदा भौतिकाग्नेर्ज्वाला इव तस्य तेजोमयं रूपं तस्य पुरत आविर्भवति ॥१॥
