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देवता: अग्निः ऋषि: केतुराग्नेयः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

य꣢या꣣ गा꣢ आ꣣क꣡रा꣢महै꣣ से꣡न꣢याग्ने꣣ त꣢वो꣣त्या꣢ । तां꣡ नो꣢ हिन्व म꣣घ꣡त्त꣢ये ॥१५२८॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

यया गा आकरामहै सेनयाग्ने तवोत्या । तां नो हिन्व मघत्तये ॥१५२८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य꣡या꣢꣯ । गाः । आ꣣क꣡रा꣢महै । आ꣣ । क꣡रा꣢꣯महै । से꣡न꣢꣯या । अ꣣ग्ने । त꣡व꣢꣯ । ऊ꣣त्या꣢ । ताम् । नः꣣ । हिन्व । मघ꣡त्त꣢ये ॥१५२८॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1528 | (कौथोम) 7 » 1 » 15 » 2 | (रानायाणीय) 14 » 4 » 2 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में फिर परमात्मा और राजा का विषय है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (अग्ने) अग्रनायक परमात्मन् वा राजन् ! (तव यया ऊत्या सेनया) आपकी जिस रक्षक सेना के द्वारा, हम (गाः) अन्तःप्रकाश की किरणों को अथवा गाय आदि सम्पत्तियों को (आकरामहै) प्राप्त करते हैं, (ताम्) उस रक्षा को वा सेना को (मघत्तये) ऐश्वर्य के प्रदानार्थ (नः) हमारे लिए (हिन्व) प्रेरित करो ॥२॥

भावार्थभाषाः -

राजा की सेना से रक्षित प्रजाएँ जैसे भौतिक सम्पत्तियाँ प्राप्त करने में समर्थ होती हैं, वैसे ही परमात्मा के रक्षण-सामर्थ्य से रक्षित जन अध्यात्म- सम्पत्तियाँ प्राप्त कर लेते हैं ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनः परमात्मनृपतिविषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (अग्ने) अग्रणीः परमात्मन् नृपते वा ! (तव यया ऊत्या सेनया) तव यया रक्षारूपया सेनया रक्षिकया सेनया वा, वयम् (गाः) अन्तःप्रकाशरश्मीन् धेन्वादिसम्पत्तीर्वा (आ करामहै) प्राप्नुमः (ताम्) रक्षां सेनां वा (मघत्तये) मघदत्तये, ऐश्वर्यप्रदानाय (नः) अस्मभ्यम् (हिन्व) प्रेरय ॥२॥

भावार्थभाषाः -

नृपतेः सेनया रक्षिताः प्रजा यथा भौतिकीः सम्पदाः प्राप्तुं शक्ता जायन्ते तथैव परमात्मनो रक्षणसामर्थ्येन रक्षिता जना अध्यात्मसम्पत्तीः प्राप्नुवन्ति ॥२॥