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देवता: अग्निः ऋषि: गोतमो राहूगणः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

आ꣡ नो꣢ अग्ने सुचे꣣तु꣡ना꣢ र꣣यिं꣢ वि꣣श्वा꣡यु꣢पोषसम् । मा꣣र्डीकं꣡ धे꣢हि जी꣣व꣡से꣢ ॥१५२६॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

आ नो अग्ने सुचेतुना रयिं विश्वायुपोषसम् । मार्डीकं धेहि जीवसे ॥१५२६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । नः꣣ । अग्ने । सुचेतु꣡ना꣢ । सु꣣ । चेतु꣡ना꣢ । र꣣यि꣢म् । वि꣣श्वा꣢यु꣢पोषसम् । वि꣣श्वा꣢यु꣢ । पो꣣षसम् । मार्डीक꣢म् । धे꣣हि । जीव꣢से꣢ ॥१५२६॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1526 | (कौथोम) 7 » 1 » 14 » 3 | (रानायाणीय) 14 » 4 » 1 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

आगे फिर वही विषयहै।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर ! आप (नः जीवसे) हमारे जीवन के लिए (सुचेतुना) शुभ ज्ञान के साथ (विश्वायुपोषसम्) सब मनुष्यों के पोषक, (मार्डीकम्) सुखदायक (रयिम्) ऐश्वर्य को (आधेहि) प्रदान करो ॥३॥

भावार्थभाषाः -

वह ज्ञान ज्ञान नहीं है और वह धन धन नहीं है, जो दूसरों के उपकार के लिए न हो ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर ! त्वम् (नः जीवसे) अस्माकं जीवनाय (सुचेतुना) शोभनेन ज्ञानेन सह (विश्वायुपोषसम्) विश्वेषाम् आयूनां मनुष्याणां पोषसं पोषकम् (मार्डीकम्) सुखयितारम् (रयिम्) ऐश्वर्यम् (आ धेहि) प्रयच्छ ॥३॥२

भावार्थभाषाः -

न तज्ज्ञानं ज्ञानं न च तद्धनं धनं यदन्येषामुपकारकं न जायते ॥३॥