आ꣡ नो꣢ अग्ने सुचे꣣तु꣡ना꣢ र꣣यिं꣢ वि꣣श्वा꣡यु꣢पोषसम् । मा꣣र्डीकं꣡ धे꣢हि जी꣣व꣡से꣢ ॥१५२६॥
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आ । नः꣣ । अग्ने । सुचेतु꣡ना꣢ । सु꣣ । चेतु꣡ना꣢ । र꣣यि꣢म् । वि꣣श्वा꣢यु꣢पोषसम् । वि꣣श्वा꣢यु꣢ । पो꣣षसम् । मार्डीक꣢म् । धे꣣हि । जीव꣢से꣢ ॥१५२६॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे फिर वही विषयहै।
हे (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर ! आप (नः जीवसे) हमारे जीवन के लिए (सुचेतुना) शुभ ज्ञान के साथ (विश्वायुपोषसम्) सब मनुष्यों के पोषक, (मार्डीकम्) सुखदायक (रयिम्) ऐश्वर्य को (आधेहि) प्रदान करो ॥३॥
वह ज्ञान ज्ञान नहीं है और वह धन धन नहीं है, जो दूसरों के उपकार के लिए न हो ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।
हे (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर ! त्वम् (नः जीवसे) अस्माकं जीवनाय (सुचेतुना) शोभनेन ज्ञानेन सह (विश्वायुपोषसम्) विश्वेषाम् आयूनां मनुष्याणां पोषसं पोषकम् (मार्डीकम्) सुखयितारम् (रयिम्) ऐश्वर्यम् (आ धेहि) प्रयच्छ ॥३॥२
न तज्ज्ञानं ज्ञानं न च तद्धनं धनं यदन्येषामुपकारकं न जायते ॥३॥