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अ꣢ग्ने꣣ वि꣡श्वे꣢भिर꣣ग्नि꣢भि꣣र्जो꣢षि꣣ ब्र꣡ह्म꣢ सहस्कृत । ये꣡ दे꣢व꣣त्रा꣢꣫ य आ꣣यु꣢षु꣣ ते꣡भि꣢र्नो महया꣣ गि꣡रः꣢ ॥१५०३

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स्वर-रहित-मन्त्र

अग्ने विश्वेभिरग्निभिर्जोषि ब्रह्म सहस्कृत । ये देवत्रा य आयुषु तेभिर्नो महया गिरः ॥१५०३

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । वि꣡श्वे꣢꣯भिः । अ꣣ग्नि꣡भिः꣢ । जो꣡षि꣢꣯ । ब्र꣡ह्म꣢꣯ । स꣣हस्कृत । सहः । कृत । ये । दे꣣वत्रा꣢ । ये । आ꣣यु꣡षु꣢ । ते꣡भिः꣢꣯ । नः꣣ । महय । गि꣡रः꣢꣯ ॥१५०३॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1503 | (कौथोम) 7 » 1 » 6 » 1 | (रानायाणीय) 14 » 2 » 1 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में अग्नि नाम से जगदीश्वर से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(हे सहस्कृत) ध्यान-बल से प्रकट किये गये (अग्ने) विश्ववन्द्य परमात्मन् ! आप (विश्वेभिः) सब (अग्निभिः) तेजों के साथ (ब्रह्म) हमारे अन्तरात्मा को (जोषि) प्राप्त होओ। (ये) जो तेज (देवत्रा) प्रकाशक बिजली, सूर्य आदियों में हैं और (ये) जो तेज (आयुषु) मनुष्यों में हैं, (तेभिः) उनसे (नः) हमारी (गिरः) वाणियों को (महया) महिमामय करो ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा ने जो अग्नियाँ रची हैं, उनसे तेज के तत्त्व को लेकर हम अपने वाणी, मन, बुद्धि, आत्मा आदि को तेजस्वी बनायें ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्राद्ये मन्त्रेऽग्निनाम्ना जगदीश्वरं प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सहस्कृत) सहसा ध्यानबलेन कृत आविष्कृत, (अग्ने) विश्ववन्द्य परमात्मन् ! त्वम् (विश्वेभिः) समस्तैः (अग्निभिः) तेजोभिः सह (ब्रह्म) अस्माकं अन्तरात्मानम् (जोषि) जुषस्व। (ये) ये अग्नयः तेजांसि (देवत्रा) देवे प्रकाशकेषु विद्युत्सूर्यादिषु सन्ति (ये) ये चाग्नयः तेजांसि (आयुषु) मनुष्येषु सन्ति (तेभिः) तैः (नः) अस्माकम् (गिरः) वाचः (महय) महिमान्विताः कुरु ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मना येऽग्नयो रचिताः सन्ति तेभ्यस्तेजस्तत्त्वं गृहीत्वा वयं स्वकीयानि वाङ्मनोबुद्ध्यात्मादीनि तेजोमन्ति कुर्याम ॥१॥