ये꣡ त्वामि꣢꣯न्द्र꣣ न꣡ तु꣢ष्टु꣣वु꣡रृष꣢꣯यो꣣ ये꣡ च꣢ तुष्टु꣣वुः꣢ । म꣡मे꣢꣯द्वर्धस्व꣣ सु꣡ष्टु꣢तः ॥१५०२॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)ये त्वामिन्द्र न तुष्टुवुरृषयो ये च तुष्टुवुः । ममेद्वर्धस्व सुष्टुतः ॥१५०२॥
ये । त्वाम् । इ꣣न्द्र । न꣢ । तु꣣ष्टुवुः꣢ । ऋ꣡ष꣢꣯यः । ये । च꣣ । तुष्टुवुः꣢ । म꣡म꣢꣯ । इत् । व꣣र्धस्व । सु꣡ष्टु꣢꣯तः । सु । स्तु꣢तः ॥१५०२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में स्तोता अपना अभिप्राय प्रकट कर रहा है।
हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवान्, दोषहन्ता, सर्वान्तर्यामी जगदीश्वर ! (ये) जो निरीश्वरवादी लोग (त्वाम्) आपकी (न तुष्टुवुः) स्तुति नहीं करते हैं, (ये च ऋषयः) और जो तत्त्वदर्शी, वेदार्थवेत्ता, आपके स्वरूप का साक्षात्कार करनेवाले विद्वान् जन (तुष्टुवुः) महिमा-वर्णन द्वारा आपकी स्तुति करते हैं, वे अपनी इच्छा के अनुसार भले ही व्यवहार करें, किन्तु (मम) मेरे स्तोत्र से (सुष्टुतः) भली-भाँति आराधना किये गये आप, मेरे अन्तरात्मा में (वर्धस्व इत्) अवश्य वृद्धि को प्राप्त होओ ॥३॥
कोई लोग कहते हैं कि परमेश्वर नाम की कोई वस्तु है ही नहीं, यदि है भी तो वह उपेक्षा योग्य है। भले ही वे उसकी स्तुति न करें। मेरी जीवन-नौका का तो वही कर्णधार है, इसलिए मैं बार-बार उसका वन्दन करता हूँ और अभिनन्दन करता हूँ ॥३॥ इस खण्ड में जीवात्मा, परमात्मा, ब्रह्मानन्द, राजा, आचार्य और स्तोता के विषय का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ चौदहवें अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त ॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ स्तोता स्वाभिप्रायमाह।
हे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् न दोषहन्तः सर्वान्तर्यामिन् जगदीश्वर ! (ये) निरीश्वरवादिनः (त्वाम्) भवन्तम् (न तुष्टुवुः) न स्तुवन्ति, (ये च ऋषयः) ये च तत्त्वदर्शिनः वेदार्थविदः त्वत्स्वरूपद्रष्टारः (तुष्टुवुः) महिमवर्णनेन त्वां स्तुवन्ति, ते स्वेच्छानुरूपं कामं व्यवहरन्तु। (मम) मदीयेन तु स्तोत्रेण (सुष्टुतः) सम्यगाराधितः त्वम् ममान्तरात्मनि (वर्धस्व इत्) वृद्धिमेव गच्छ ॥३॥
केचिद् ब्रुवन्ति परमेश्वरो नाम कश्चिन्नास्त्येव, अस्ति चेदुपेक्षणीय इति। कामं ते तं नाभिष्टुवन्तु। मम तु जीवननौकायाः स एव कर्णधार इति मुहुर्मुहुस्तं वन्देऽभिनन्दये च ॥३॥ अस्मिन् खण्डे जीवात्मनः परमात्मनो ब्रह्मानन्दरसस्य नृपतेराचार्यस्य स्तोतुश्च विषयस्य वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥