त्व꣡म꣢ग्ने य꣣ज्ञा꣢ना꣣ꣳ हो꣢ता꣣ वि꣡श्वे꣣षाꣳ हि꣣तः꣢ । दे꣣वे꣢भि꣣र्मा꣡नु꣢षे꣣ ज꣡ने꣢ ॥१४७४॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)त्वमग्ने यज्ञानाꣳ होता विश्वेषाꣳ हितः । देवेभिर्मानुषे जने ॥१४७४॥
त्व꣢म् । अ꣣ग्ने । यज्ञा꣡ना꣢म् । हो꣡ता꣢꣯ । वि꣡श्वे꣢꣯षाम् । हि꣡तः꣢ । दे꣣वे꣡भिः꣢ । मा꣡नु꣢꣯षे । ज꣡ने꣢꣯ ॥१४७४॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में २ क्रमाङ्क पर परमात्मा और सूर्य के विषय में की जा चुकी है। यहाँ परमेश्वर के गुण-कर्मों का वर्णन करते हैं।
हे (अग्ने) अग्रनेता, ज्ञानी, सर्वान्तर्यामी, तेजस्वी, पापों को दग्ध करनेवाले परमेश्वर ! (त्वम्) सर्वोपकारी आप (यज्ञानाम्) देवपूजा, सङ्गतिकरण, दान रूप व्यवहारों के (होता) दाता हो और (विश्वेषाम्) सबके (हितः) हितकर्ता हो। साथ ही (मानुषे जने) मानव-समाज में (देवेभिः) सदाचारी विद्वानों द्वारा [उपासना किये जाते हो] ॥१॥
जगदीश्वर हमारा पिता होकर हमें सब व्यवहार सिखाता है, न्यायकारी और दयालु होकर सबका हित करता है, इस कारण सब लोगों को उसकी पूजा करनी चाहिए ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके २ क्रमाङ्के परमात्मसूर्ययोर्विषये व्याख्याता। अत्र परमेश्वरस्य गुणकर्माणि वर्णयति।
हे (अग्ने) अग्रणीर्ज्ञानवन् सर्वान्तर्यामिन् तेजोमय कल्मषदाहक परमेश्वर ! (त्वम्) सर्वोपकर्त्ता (यज्ञानाम्) देवपूजासंगतिकरणदानरूपाणां व्यवहाराणाम् (होता)असि, (विश्वेषाम्) सर्वेषाम् (हितः) हितकारी च वर्तसे। अपि च, (मानुषे जने) मानवे समाजे, (देवेभिः) सदाचारिभिः विद्वद्भिः उपास्यसे इति शेषः ॥१॥२
जगदीश्वरोऽस्माकं पिता भूत्वाऽस्मान् सर्वान् व्यवहारान् शिक्षयति, न्यायकारी दयालुश्च स सर्वेषां हितकर्ताऽस्तीति कृत्वा सर्वैर्जनैः पूजनीयः ॥१॥